कविता

एक भ्रूण की करुण पुकार

कर रहा है इक करुण पुकार
कोख में पलता हुआ इक भ्रूण !

हे मेरी माता ! हे मेरी मैया
तू न कर अपनी कन्या का खून !

जब पता चला तू माँ बनेगी
तू तो बड़ी हर्षाई थी !

बड़े ही गर्व से तूने तो
सब को ये खबर सुनाई थी !

आज जब तुझको हो गया है ज्ञान
कोख में तेरे है इक बालिका प्राण !

तो क्यूँ इतनी तू घबराई है
किस बात से फिर तू सताई है !

तू स्वयं भी तो इक स्त्री है
तूने भी तो नानी की कोख में जगह पाई थी!

फिर क्यों हर पल ऐ माँ
तू मेरी जान लेने को तुली है !

सुना है मैंने कि ये संसार इक गन्दा सागर है
माँ की कोख में ही मिलता सब सुख गागर है!

नौ माह तक माँ के खून से शिशु के प्राण तन बनते हैं
माँ के भीतर रहकर ही सब अंग पनपते हैं !

फिर तू कैसी माँ है रे माँ
जो मुझको ये ममता की छाया नहीं देगी !

तेरे भीतर रहकर ही तो मैं
इस सृष्टि को भी देख सकूंगी !

अभी तो मैंने इस जग को
इतना सा भी जाना नहीं है!

जन्म देने से पहले ही माँ
क्यूँ तूने मुझे ठुकराना ही है !

माँ तो कहलाती ममता की मूरत
सुख की छाया, भगवान की सूरत !

संतान चाहे हो जाए कितने भी कुकर्मी
माँ तो सदा शिशु की हमदर्द है रहती !

इक नन्हीं सी जान हूँ मैं तो
मुझे भी तो जीने दे हे माँ !

मैं भी तो देखूँ इस संसार में
कैसे कैसे रंग भरें हैं हे माँ !

ऐसा क्या गुनाह हो गया है मुझसे
क्यूँ बोझ समझ त्यागना चाहती मुझे!

इतनी क्यों हो रुष्ट मुझसे
खामोश क्यूँ हो बात करो मुझसे !

माँ तो जग की जननी होती है
परिवार का वंश बढ़ाती है !

सती, सावित्री , दुर्गा जैसी
कन्याओ को पैदाती है !

मैं भी उनके जैसी बनूँगी
तेरे अंगना में फिर चहकुंगी !

बापू की खूब सेवा करके
दादा दादी का नाम रोशन करूंगी !

मुझे मारकर हे माता
क्यूँ अपना पाप बढ़ाती हो!

अपनी ही अंश को अलग कर
क्यूँ कुमाता कहलाती हो !

इक बार जन्म देकर तो देख
किस तरह तेरी बगिया महकाती हूँ !

तेरे आंचल की छाया में
देख कैसे मैं चह्चाती हूँ !

तेरे सुख दुःख की सखी बनूंगी
नैनन के अश्रु सब दूर करुँगी !

ढाल बन खड़ी रहूंगी समक्ष तेरे
बेटे जैसा हर कार्य करुँगी !

हे माँ, हे जननी मेरी
सुन ले करूण पुकार तू मेरी !

न कर इतनी घृणा मुझसे
सीखूंगी मैं जीना तुझसे !

कल को मैं भी स्त्री बनकर
कन्या को ही जन्म दूंगी !

खुद जन्म पाया अपनी माँ से
गर्व से सबको कहूँगी !

डॉ सोनिया

डॉ. सोनिया गुप्ता

मैं डॉ सोनिया गुप्ता (बी.डी.एस; ऍम.डी.एस) चंडीगढ़ के समीप,डेराबस्सी शहर में रहने वाली हूँ! दंत चिकित्सक होने के साथ साथ लिखना मेरा शौंक है! २००५ में पहली बार मैंने कुछ लिखने की कोशिश में अपनी कलम उठाई थी और, आगे ही आगे लिखने का सफर चलता रहा! कुछ कविताएँ हरियाणा की पत्रिका “हरिगंधा में प्रकाशित हुई! मेरी हाल ही में दो काव्य संग्रह प्रकाशित हुई हैं! मैं अंग्रेजी में भी कविताएँ लिखती हूँ, और कुछ पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई! मेरे तीन अंग्रेजी और तीन हिंदी के काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होने वाले हैं! कवियत्री होने के साथ साथ मुझे चित्रकारी, गायिकी, सिलाई, कढाई, बुनाई, का भी हुनर प्राप्त है! मेरे जीवन की अनुकूल परिस्थितयों ने मुझे इन सब कलाओं का अस्तित्व प्रदान किया! कहते हैं, ”इरादे नेक हों तो सपने भी साकार होते हैं, अगर सच्ची लग्न हो तो रास्ते भी आसान होते हैं”..अपनी लिखी इन्हीं पंक्तियों ने मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया आगे बढने के लिए ! मेरा हर कार्य मेरे ईश्वर, मेरे माता पिता को समर्पित है, जिनके आशीष से मैं आज इस मुकाम तक पहुंची हूँ ! आशा है मेरी कलम से तराशे शब्द थोड़े बहुत पसंद अवश्य आएँगे सभी को!!!