मुक्तक/दोहा

दोहे

अजब गजब की रीत नित, अजब गजब का शान
किसका किसने लुट लिया, किसकी है पहचान।।-1
भीड़ मची दो घाट पर, धोते हैं सब खूब
एक दूजे की कालर, पकड़े है अब डूब।।-2
भारत माँ की एकता, होती है पैमाल
लगता है की वतन है, होता है जयमाल।।-3
खिचड़ियां त्यौहार है, रोटी भी है ईद
आपस में कैसे ठने, कैसी है ये जीद।।-4
तोर मुर्गा मोर गाय, दोनों मरते हाय
कभी कभी तो सोच लो, साथी सखा सहाय।।-5
रे मन काहें कुढ़ रहा, किसका माथे बोझ
कैसे बढ़ी विलाशिता, किसकी है यह खोज।।-6
बड़े बड़े सपने रहे, बड़ी बड़ी तरकीब
कोस रहा है अब किसे, भुगतो कर्म नशीब।।-7
रोजी रोटी ढूंढता, अव्वल दर्जा पास
कुर्सी पर बैठा मिले, साहब खासम खास।।-8
नौ मन की राधा दिखे, कृष्ण बांसरी बांस
काला पानी जामुनी, जहरीला अहसास।।-9
ताल खाल गोचर नहीं, बंजर ऊसर मोल
जनहित में जारी हुआ, मंहगी बोली बोल।।-10
शहर किनारे गाँव घर, इंच इंच लो नाप
धरो रोकड़ दे मारो, जो है इसका बाप।।-11
गाड़ो झंडा नाम लिख, उन्नति करे विकास
रत्ती भर घाटा नहीं, धंधा बड़ विश्वास।।-12

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ