गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वो मंजिल पर आकर पता पूछते हैं ।
मेरे अहले दिल की रजा पूछते हैं ।।

नसीहत जफ़ाओं की जो दे गए थे ।
सरे बज्म हमसे वफ़ा पूछते हैं ।।

लिखी जिसने दर्दे सितम की इबारत ।
मेरे आसुओं से ख़ता पूछते हैं ।।

किया जब भी तारीफ मैंने किसी की ।
मुहब्बत का हर वास्ता पूछते हैं ।।

हुई जब से हासिल उन्हें मिलकियत है।
जमाने से कीमत अता पूछते हैं ।।

खुदा जाने क्या फैसला देंगे हाकिम ।
गुनाहों की हमसे दफ़ा पूछते हैं ।।

जलाने की हसरत लिए मेरे कातिल ।
हरे जख़्म की दास्ता पूछते है ।।

खिंजा में है पत्तो ने क्यूँ साथ छोड़ा ।
ये हाल ए शजर फ़ाख़्ता पूछते हैं ।।

बड़ी शोख नजरे अजब की हिमाकत ।
हैं दिल में मगर रास्ता पूछते हैं ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • लीला तिवानी

    पूछना ही इनकी फितरत है. अति सुंदर.

  • विजय कुमार सिंघल

    उत्तम ग़ज़ल !

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