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जिस मनुष्य में मानवता जग जाती है वह महापुरुष बन जाता हैः आचार्य पीयूष

ओ३म्

आर्यसमाज का 37 वां वार्षिकोत्सव

आज 30 अप्रैल, 2016 को हमें आर्यसमाज, नत्थनपुर, देहरादून के 37 सवें वार्षिकोत्सव में सम्मिलित होने का अवसर मिला। हमारे वहां पहुंचने पर हरिद्वार के आर्य भजनोपदेशक श्री धर्मसिंह सहमल के भजन हो रहे थे। उनके भजन के कुछ शब्द थे कि बच्चों को समझो अपनी आखों के तारे, नफरत से इन्हें बचाना आदि आदि। इस प्रकार के अनेक प्रेरक विचार भजनों में सुनने को मिले। भजनोपदेशक को ढोलक पर संगति देने वाले कलाकार का नाम था श्री चमनलाल जो बड़ी तन्मयता से अपना संगीत दे रहे थे। भजनों के बाद देहरादून के ही आर्य विद्वान व पुरोहित श्री आचार्य पीयूष का प्रवचन हुआ। आपने कहा कि यदि आम न हो तो आम और बबूल का अन्तर पता नहीं चल सकता। मनुष्य में यदि मानवता है तो वह मनुष्य है अन्यथा वह कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि कोई मनुष्य करोड़पति या इससे भी अधिक धनवान है, उसका मनुष्य कहलाना तभी सार्थक हो सकता है यदि उसमें मानवता हो। उन्होंने कहा कि मानवता रहित धनवान मनुष्य मनुष्य नहीं होता। विद्वान वक्ता ने कहा कि यदि किसी ने शास्त्र पढ़ लिये और उसे अपने आचरण में नहीं उतारा, तो उसका शास्त्रों को पढ़ने का कोई अर्थ नहीं है। उन्होंने कहा कि जिसका व्यवहार अच्छा है, ऐसा अनपढ़ व्यक्ति भी उन पढ़े लिखों से कहीं अधिक अच्छा है जिनका व्यवहार अच्छा नहीं है। पढ़ाई-लिखाई का अर्थ है कि मनुष्य का समझदार वा विवेकशील होना और पढ़े हुए विचारों को अपने जीवन व व्यवहार में उतारना। आर्य विद्वान आचार्य पीयूष ने आर्यलेखक डा. श्री सत्यापाल सिंह की पुस्तक इंसान की तलाश’ से मानवता का एक उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि एक माता-पिता की सन्तान शहर में पढ़ती थी। माता-पिता ने उसे उसके पास जाने का अपना कार्यक्रम सूचित किया। पुत्र अपनी दो पहियों वाली मोटर गाड़ी से माता-पिता को लेने रेलवे स्टेशन जा रहा था। मार्ग में दुर्घटना हो गई और वह घायल हो गया। लोग उसे अस्पताल ले जाने के लिए आने जाने वाली गाडि़यों को रोक रहे थे परन्तु कोई रूक नहीं रहा था। दूसरी ओर माता-पिता ने रेलवे स्टेशन पहुंच कर बेटे की प्रतीक्षा की। न आने पर चिन्तित हो वह टैक्सी लेकर पुत्र के घर की ओर चल पड़े। मार्ग में दुर्घटना के स्थान पर लोगों ने गाड़ी रोकी परन्तु माता-पिता ने दुर्घटना में घायल व्यक्ति को अस्पताल ले जाने के लिए बहाना बनाकर मना कर दिया। बाद में किसी अन्य प्रकार से युवक को पास के अस्पताल ले जाया गया। माता-पिता अपने पुत्र के घर पहुंचे। पुत्र के वहां न होने पर पड़ोसियों से पूछा, पता चला कि वह उन्हें लेने ही स्टेशन गया था। माता-पिता को पुत्र की चिन्ता सताने लगी। वह टैक्सी से उस दुर्घटना वाले स्थान पर पहुचें। वहां उपस्थित कुछ लोग उन्हें अस्पताल ले गये। घायल व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी थी। माता-पिता ने डाक्टर से मिलकर पूछताछ की। डाक्टर के यह कहने पर कि यदि इस युवक को आधा धण्टे पहले अस्पताल लाया गया होता तो इसकी जान बचाई जा सकती थी। यह सुनकर माता पिता को अपनी मूर्खता पर दुःख व पश्चाताप हुआ। उनमें मानवता न होने के कारण ही उनका पुत्र आज उनसे दूर हो गया था। विद्वान वक्ता आचार्य पीयूष ने कहा कि यदि माता-पिता में मानवता होती तो वह युवक बच सकता था। जिस मनुष्य में मानवता और सद्व्यवहार नहीं, वह मनुष्य पशु से भी बदतर होता है। जिस मनुष्य में मानवता जग जाती है तो वह महान पुरुष बन जाता है।

श्री आनन्द सिंह पंवार ने अपने उद्बोधन में कहा कि आर्यसमाज के सैतींसवें वार्षिकोत्सव में सम्मिलित होकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। श्रोताओं में माताओं की अधिक उपस्थिति पर उन्होंने माताओं का शाब्दिक अभिनन्दन किया। उनसे पूर्व एक बालक द्वारा गायत्री मन्त्र का पाठ किये जाने का उल्लेख कर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्ति की और कहा कि हमें ऐसे बच्चों को अच्छे संस्कार देकर अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहिये। आर्यसमाज नत्थनपुर के विभिन्न कार्यों व व्यवस्थाओं की उन्होंने सराहना की। उनके बाद समाज के ही एक वयोवृद्ध वानप्रस्थी महात्मा ज्ञान भिक्षु ने कहा कि समाज के सभी सदस्यों को परिवार सहित आर्यसमाज के सत्संग में जाना चाहिये। उन्होंने बताया कि वह हरिद्वार के अर्धकुम्भ में आर्यसमाज के शिविर में लगभग एक महीने तक रहे। पौराणिक अन्धविश्वासों की चर्चा करते हुए उन्होंने वहां के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये। एक उदाहरण में उन्होंने बताया कि एक दम्पती ने एक पुरोहित को कुछ कर्मकाण्ड के बारे में पूछा तो उसने 20 हजार रूाये का व्यय बताया। उसके पास धन कम था। उसने अपने पुत्र को फोन किया। पुत्र ने पण्डितजी के बैंक खाते में आनलाइन धन जमा करा दिया। पुरोहित ने कुछ मन्त्र वा श्लोक आदि पढ़कर क्रिया को सम्पन्न करा दिया। विद्वान वक्ता ने कहा कि महर्षि दयानन्द ने हमें इन मिथ्या कर्मकाण्डों से ही नहीं बचाया अपितु इन पुरोहितों की लूट से भी बचाया है। उन्होंने श्रोताओं को कहा कि स्वामी दयानन्द जी की बात मानिए और वेदों की ओर लौटिये। हरिद्वार में आर्यसमाज के शिविर में स्वामी चन्द्रवेश जी का उल्लेख कर आपने कहा कि उन्होंने वहां उपदेश में कहा था कि कोई पारौणिक ईश्वर का साक्षात्कार कभी नहीं कर सकता। ईश्वर का साक्षात्कार वेदों के मार्ग पर चलने से ही हो सकता है।

आर्यसमाज नत्थनपुर के प्राण आर्य विद्वान श्री उम्मेद सिंह विशारद ने कहा कि मनुष्य का जीवन संघर्ष का जीवन है। उन्होंने कहा कि हमारे लोगों का जीवन तो धन कमाने और आवश्यकता की वस्तुएं एकत्रित करने में ही व्यतीत हो जाता है। अनेक मत-मतान्तरों की चर्चा कर श्री विशारद ने कहा कि जिस प्रकार हम बाजार से उत्तम पदार्थ व वस्तुएं ही खरीदते हैं, उसी प्रकार से हमें धर्म वा मत का चयन करते समय भी उत्तम अर्थात् वैदिक मत वा धर्म वा आर्यसमाज का ही चयन करना चाहिये। ऐसा करना ही विवेकपूर्ण निर्णय कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य वह होता है जो देश, धर्म व जाति के लिए त्याग करता है। हमें जीवन में मोक्ष की प्राप्ति को अपना लक्ष्य बनाना चाहिये। आपने गुरु गोविन्द सिंह जी के जाति रक्षा के कार्यो के उदाहरण देकर उनकी प्रशंसा की। उन्होंने लोगों को आर्यसमाज से जुडने का आह्वान किया। उन्होंने भाव विभोर होकर एक भजन भी प्रस्तुत किया जिसके बोल थे जीवन एक संग्राम है लड़ना इसे पड़ेगा। जो लड़ नहीं सकेगा वह आगे नहीं बढ़ेगा।। इतिहास कह रहा है संग्राम की कहानी, राणा शिवा भगतसिंह और झांसी की रानी, कोई जो विद्वान होगा वो इतिहास को पढ़ेगा।।’ श्री उम्मेद सिंह जी के भजन के बाद एक बालिका देवकी ने आर्यसमाज का प्रसिद्ध भजन भरोसा कर तू ईश्वर पर तुझे धोखा नहीं होगा। यह जीवन बीत जायेगा तुझे रोना नहीं होगा।। कभी सुख है कभी दुःख है यह जीवन धूप छाया है।। हंसी में ही बीता डालों बितानी जिन्दगानी है।।’ प्रस्तुत किया जिसे श्रोताओं ने उनकी आवाज में मिलाकर गीत को गाया जिससे सुखदायी भक्तिरस उत्पन्न हो गया।

आज के मुख्य वक्ता आर्य संन्यासी स्वामी वेदानन्द सरस्वती थे। आपने कहा कि वह सभा सभा नहीं होती जिसमें कि वृद्ध व्यक्ति सम्मिलित नहीं होते। वह वृद्ध नहीं होता जो धर्म की बातें नहीं करता। व्यास जी का उल्लेख कर विद्वान ने आगे कहा कि वह धर्म नहीं होता जिसमें सत्य नहीं होता। विद्वान वक्ता ने प्रभावशाली रूप से कहा कि सत्य के व्यवहार को ही धर्म कहते हैं। यजुर्वेद में आये वेद मन्त्र कोऽसि कतमोऽसि कस्यासि को नामासि’ का उल्लेख किया और इसके अर्थ तू कौन है, क्या है, किसका है और तेरा नाम क्या है, पर प्रकाश डाला और इसकी विस्तृत व्याख्या की। आपने ज्ञान, संज्ञान, विज्ञान व प्रज्ञान का उल्लेख कर सूर्य, चन्द्र व पृथिवी की गति सहित वर्षा व आंधंी तूफान के वैज्ञानिक नियमों व इनके कारणों को स्पष्ट किया। इस बीच उन्होंने कहा कि विज्ञान पदार्थ विषयक सूक्ष्म तथ्यों व अदृश्य सत्य ज्ञान से परिचित कराता है। उन्होंने यह भी बताया की शरीर के सभी अंग परस्पर जुड़े हुए हैं व एक दूसरे पर आश्रित हैं। उन्होंने कहा कि मुम्बई का समुद्र अरब सागर है जिससे भारत में वर्षा होती है। कलकत्ता का समुद्र हिन्द महासागर है और इससे कभी देश में वर्षा नहीं होती। उन्होंने यह भी कहा कि चेन्नई का समुद्र चक्रवात लाता है। विद्वान वक्ता ने कहा कि पृथिवी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है और एक दिन अर्थात् 24 घण्टों में अपनी घूरी पर घूमते हुए एक चक्र पूरा करती है जो कि लगभग 24 हजार मील का होता है। इसके अनुसार पृथिवी की अपनी घूरी पर घूमने की गति लगभग एक हजार मील प्रति घंटा होती है। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए विद्वान वक्ता ने कहा कि हमें अपने स्वरूप को जानना है। आत्मा को जानने से ही हमारा कल्याण होगा।

आयोजन में द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल और मानव कल्याण केन्द्र के संस्थापक डा. वेद प्रकाश गुप्ता और वैदिक साधन आश्रम तपोवन के यशस्वी मन्त्री श्री इं. प्रेमप्रकाश शर्मा एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति सम्मिलित थे। स्वामी वेदानन्द जी के प्रवचन के बाद शान्तिपाठ हुआ और उसके अनन्तर ऋषि लंगर हुआ जिसमे सभी ने परस्पर पंक्तिबद्ध बैठकर भोजन किया। आर्यसमाज के उत्सव का कार्यक्रम कल दिनांक 1 मई, 2016 को सम्पन्न होगा।

मनमोहन कुमार आर्य

6 thoughts on “जिस मनुष्य में मानवता जग जाती है वह महापुरुष बन जाता हैः आचार्य पीयूष

  • मनमोहन भाई , लेख अच्छा लगा , “यदि किसी ने शास्त्र पढ़ लिये और उसे अपने आचरण में नहीं उतारा, तो उसका शास्त्रों को पढ़ने का कोई अर्थ नहीं है” यह बिलकुल सही है . जो आप ने माता पिता और बेटे की कहानी लिखी कि अगर बाप उस समय गाडी कड़ी कर लेता तो बेटा बच जाता . यह माँ बाप मंदिर भी जाते होंगे और इन के मंदिर जाने के किया अर्थ हुए जब कि धर्म से कुछ सीखा ही नहीं .

    • मनमोहन कुमार आर्य

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी। सुंदर वा उपयुक्त प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक आभार। संसार में अधिकांश लोग लोभी, स्वार्थी व कामनाओं के वशीभूत दिखाई देते हैं। यह अवगुण अधिकां शास्त्र पढ़े हुवे लोगो में भी होते हैं जबकि यह शिक्षा किसी शास्त्र वा स्कूल की किताब में नहीं होती। इसी लिए विद्वानों को इनसे मिलने वाले दुखों का उपदेश करना पड़ता है कि जिससे लोग इन्हे छोड़ दे। यह ऐसे प्रबल शत्रु हैं कि अधिकांश लोग इनसे पराजित हो जाते हैं। दूसरी एक्सीडेंट की घटना यह बताती है कि लोगो में परमार्थ की प्रवृत्ति बहुत कम है जिससे कई बार वही इनका शिकार हो जाता है। जब ठन्डे दिल से विचार करता, सुनता या पढता है तो सभी को लगता है कि हमें परमार्थ करना चाहिए परन्तु जब परीक्षा की घडी आती है तो अनेक लोग उसमे फ़ैल हो जाते हैं। यह संसार का बहुत बड़ा आस्चर्य है। जो पास होते हैं वह देवता और महापुरुष होते हैं। सादर।

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, आप किसी भी सभा-सम्मेलन का वर्णन इतनी खूबी से करते हैं, कि हमें लगने लगता है, कि हम स्वयं उस सभा में उपस्थित हैं. सच है मानवता के बिना मानव कैसा? इंसानियत के बिना इंसान कैसा? सभी विचार अति उत्तम लगे.

    • मनमोहन कुमार आर्य

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी। मैं इन समाचारों वा लेखों को लिखने में अधिक मानसिक परिश्रम नहीं करता। मन में जो विचार आते जाते हैं उन्हें उसी प्रकार से व्यक्त कर देता हूँ। मेरा सौभाग्य है कि आपको मेरे विचार पसंद आते हैं। ईश्वर की ही कृपा प्रतीत होती है। सादर।

      • लीला तिवानी

        प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने सही कहा, जब मन में भाव घुमड़ते हों, तो समाचारों वा लेखों को लिखने में अधिक मानसिक परिश्रम नहीं करता पड़ता. सब काम सहज और आनंददाई हो जाता है.

      • लीला तिवानी

        प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने सही कहा, जब मन में भाव घुमड़ते हों, तो समाचारों वा लेखों को लिखने में अधिक मानसिक परिश्रम नहीं करता पड़ता. सब काम सहज और आनंददाई हो जाता है.

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