बेटियों का उपकार
हर कोई चाहता है बेटा पर बेटियाँ महत्वहीन क्यों है
बेटा पैदा होता बजती बधाई बेटी पर गम़गीन क्यों है
जिस कोख से हमने जन्म लिया वो भी तो एक बेटी है
फिर कोख में पल रही बिटिया क्यों सिसकती रोती है
पुजते हम लक्ष्मी दुर्गा काली वो भी तो रूप नारी की है
बेटी अग़र घर मे हो उसकी सासे भी किलकारी सी है
बेटा पैदा होने पर थालीयो का सरगम सुनाई देता है
बेटी पैदा होने पर घर मे क्यों मायूशी दिखाई देता है
अगर बेटियाँ नही होती तो हमसब भी यहाँ नहीं होते
बस जाये बेटे का भी परिवार ये अरमान भी नही होते
माना बेटी परायी धन है फिर भी आप क्यों घबराते हो
आप भी तो बेटियों के बाप है बताने से क्यों शर्माते हो
मेरी बिटिया मेरे आगंन मे पुजा की थाली और रोली है
मेरे अकेलेपन मे हर गम़ में शरीक वो मेरी हमजोली हैं
दुनिया में हर किसी से भी बढ़कर है ये प्यारी बेटियाँ
इस धरा पर मनुष्य जाति की परिचायक है ये बेटियाँ
“बेख़बर”गलत भावनाओं का मिलकर हम संहार करे
आवो सब मिलकर यहाँ हर”बेटियों का उपकार”करे
— बेख़बर देहलवी