गीत/नवगीत

मधुगीति : हलके से जब मुसका दिए

हलके से जब मुसका दिए, उनको प्रफुल्लित कर दिए;
उनकी अखिलता लख लिए, अपनी पुलक उनको दिए !
थे प्रकट में कुछ ना कहे, ना ही उन्हें कुछ थे दिए;
पर हिया आल्ह्वादित किए, कुछ उन्हें वे थिरकित किए !
जो रहा अन्दर जगाए, उर तन्तु को खिलखिलाए;
सब नाड़ियाँ झँकृत किए, हर चक्र को झिलमिलाए !
निज आत्म का आभास दे, उस आत्म को अहसास दे;
परमात्म का सुर दे दिए, आह्वान अद्भुत भर दिए !
विश्वास उनको दे दिए, सहचर्य सुख ले दे दिए;
जग तंत्र ‘मधु’ तन्त्रित किए, प्रभु यन्त्र को यन्त्रित किए !
गोपाल बघेल ‘मधु’
टोरोंटो, ओंटारियो, कनाडा