कहानी

कहानी : वो लाश

रात का तीसरा पहर चल रहा होगा , चारो तरफ डरावना घुप अँधेरा ।बस्ती में इंसान तो क्या जानवर भी सो गए थे ,बीच बीच में कंही से कुत्तो के भौंकने की आवाजे रह रह के आ जाती थीं जो सन्नाटे को भंग कर देती थीं । ऐसे में एक अदम कद का साया सर से पाँव तक कंबल में ढंका हुआ बगल में कुछ दबाये तेजी से गाँव से बाहर जाने वाले उबड़ खाबड़ रास्ते पर चला जा रहा था ।

शहर से बहुत दूर ये एक छोटा सा गाँव था जो दो तरफ जंगल और एक तरफ नदी से घिरा हुआ था ।चुकी गाँव शहर से दूर बसा था तो अभी भी आधुनिकता से बहुत दूर था , गाँव में बिजली अभी नहीं आई थी वाहन भी इक्का दुक्का ही घरो में ही थे । नदी पर एक लकड़ी का पुल था जिसे पार कर के शहर जाया जा सकता था वो भी बरसातों में बंद हो जाता था।

साया गाँव से बाहर पहुँच के एक दोराहे पर आ गया जंहा से एक रास्ता जंगल की तरफ जाता था तो दूसरा पुल की तरफ ।साये ने जेब से छोटी सी टार्च निकाली और तेजी से जंगल की तरफ जाने वाले रास्ते पर हो लिया , तब तक आसमान में काले बादल भी घिर आये थे हवा तेज चल रही थी ।दूर कंही बिजली चमकने से ऐसा लगता था की कुछ देर में ही बारिश होने वाली थी ,साया चेहरे पर डर के भाव लिए जंगल की तरफ बढ़ा जा रहा था । कच्चे रास्ते के दोनों तरफ ऊँची ऊँची झाड़ियाँ थी जिसमे इंसान आसानी से छुप सकता था।

झाड़ियो में से गीदड़ , लकड़बग्घे जैसे जानवरो की आवाजे वातवरण को और डरावना बना रहीं थी । साया बीच बीच में झाड़ियो पर टार्च की रौशनी मार देता तो जानवरो की आँखे साफ़ चमकती , तेज हवा के कारण रास्ते के पेड़ आपस में टकरा के चर्चारहट की भयानक आवजे निकाल रहे थे ।साया दम साधे बिना पीछे मुड़े आगे बढ़ा जा रहा था की अचानक उसके पैरो से कुछ गीला गीला सा टकराया , उसने फ़ौरन टार्च की रौशनी मारी तो यह एक दो मुंह वाला सांप था जो रास्ते को पार करते हुए उसके पैरो से टकरा गया था ।साया डर के साथ हलकी चीख लिए उछल गया और और तेजी से चलने लगा । तब तक हलकी हलकी बुँदे शुरू हो गईं थीं , बीच बीच में जब बिजली कौंधती तो ऊँचे हिलते देवदार के पेड़ ऐसे लगते मानो कोई दैत्य खड़ा है ।

काफी दूर चलने के बाद साया एक स्थान पर पहुंचा , यह स्थान चारो तरफ से कटीली झाड़ियो से घिरा था और झाड़ियो के पीछे बबूल, महुए आदि के पेड़ खड़े थे बीच में छोटा सा समतल स्थान था ।साया वंहा आके रुक गया बारिश अब तेज होने लगी थी तभी बिजली चमकी तो एक क्षण के लिए उजाला हो गया सामने मिट्टी का उभरा हुआ टीला दिखा , यह कब्र थी जो शायद 7-8 घण्टे पहले ही बनी थी यानि की कब्र ताज़ा थी ।

साया कब्र के पास आ गया , उसने कम्बल हटाया और बगल से एक कुदाल निकाल ली ।बारिश की बुँदे और तेज हो गई थी साया पूरी तरह गीला हो गया था ,उसने कुदाल उठा के जैसे ही कब्र खोदनी चाहि अचानक कोई चीज पास के पेड़ से तेजी से उड़ती हुई आई और साये के चेहरे पर पंजा मारता हुआ झाड़ियो में गायब हो गया । साया चीख मार के पीछे गिर गया , उसनें अपने चेहरे पर हाथ लगाया तो पंजो के गहरे निसान थे जिनमे से खून बह निकला था ।

साया फिर खड़ा हुआ और कुदाल उठा तेजी से कब्र को खोदने लगा , पीछे उल्लुओ की कर्कश आवाजे कानो को फाड़ दे रही थीं ।कब्र ताज़ी और गीली होने के कारण जल्दी खुद गई , सामने के जवान लड़की की लाश पड़ी थी ।बारिश की बूंदों में उसका चेहरा धुल गया था ,साये ने टार्च की रौशनी चेहरे पर मारी तो ऐसा लगा की वह मरी नहीं सो रही हो उसका खूबसूरत चेहरा अब भी चमक रहा था ।
साया घुटनो पर झुक गया और रोने लगा , वह लड़की की लाश से लिपट के रोने लगा ।

“तुम मर नहीं सकती … तुम मुझे छोड़ के नहीं जा सकती.. .. मैं तुम्हे वापस लाऊंगा… तुम मेरी हो” साये ने पागलो की तरह चीखते हुए कहा और लड़की की लाश उठा के कंधे पर डाल चल दिया ।

अभी कब्र वाले स्थान से थोड़ी दूर ही गया था की अचानक एक पेड़ चरचरा के उसके ऊपर गिरने वाला था की वह तेजी से एक तरफ उछल गया पर फिर भी पेड़ की एक टहनी उसके दायें पैर पर गिर ही गई । साया पीड़ा से कराह उठा , हल्का घाव हो गया था । पर जख्म की परवाह न करते हुए साया लड़की की लाश लिए तेजी से नदी की तरफ जाने वाले रास्ते पर चल दिया ।

लड़की का वजन लादे लंगड़ाता हुआ भयानक पीड़ा सहता हुआ साया थोड़ी देर में नदी के घाट पर था। रेतीले घाट पर फूस की एक झोपडी बनी थी। कंधे पर लड़की की लाश लिए लंगड़ाता हुआ साया झोपडी में दाखिल हुआ । उसने लाश एक तरफ रखी और टार्च की रौशनी में कुछ खोजने लगा , कोने में एक दिया मिला माचिस से दिया जलाने के बाद झोपडी में हलकी रौशनी फ़ैल गई । सामने एक लोहे का संदूक रखा था साये ने संदूक खोला और उसमे से तंत्र साधना के सामान बाहर निकालने लगा ।

थोड़ी देर में साया ध्यान मुद्रा में बैठा था सामने लड़की की लाश पड़ी थी , साया मन्त्र बुदबुदा रहा था -“हीं वा हु!हु! क्ली क्लो ..स्तु वा ..” साया मन्त्र और तेजी से और कर्कश आवाज में बोल रहा था ।

अचानक साये ने एक कटार निकाली और अपने अंगूठे को चीर दिया फिर उसने कटार से लड़की के माथे पर घाव बनाया और उस पर अपना जख्मी अंगूठा रख दिया ।फिर उसके बाद वह फिर से मन्त्र बोलने लगा – “क्लि क्लि एव् हुत हुत ….” अब वह क्रोध में मन्त्र बोलते जा रहा था और सामने जलती अग्नि में सामग्री डाल के उसे और भड़का रहा था ।

अब सुबह होने वाली थी पर लाश पर कोई असर नहीं हो रहा था उसके मंत्रो का , वह गुस्से में पागल हो गया उसने लड़की के बाल पकडे और गुस्से में चीखने लगा – “तुझे जिन्दा होना होगा … तुझे जागना होगा … तुझे वापस आना होगा ….”

“तुझे वापस आना होगा …. तुझे जागना होगा।” साया लड़की के बाल पकड़ के खींच रहा था और गुस्से में।चीख रहा था ।

“केशव!! आह! केशव!! छोड़ो मुझे … छोड़ दो …छोड़ दो मेरे बाल” बैड पर लेटी केशव् की पत्नी ने अपने बाल छुड़ाते हुए चीखने लगी। “छोड़ोsssss… … आह!” केशव की पत्नी केशव के हाथ पर काटते हुए चिल्लाई।

हाथ पर काटने से जैसे केशव को होश आया हो और वह एक दम उठ बैठा और आस्चर्य से बोला “क्क्… क्या हुआ ?”

“इडियट तुम सपने में मेरे बाल खींच रहे थे … ” पत्नी ने अपने बाल सहलाते हुए गुस्से से कहा ।

“ओह! तो मैं सपना देख रहा था …. सॉरी ” केशव ने झेंपते हुए पत्नी से कहा ।

“जभी कहती हूँ की इतनी किताबे मत पढ़ा करो … रात को उलटे सीधे सपने देखते हो और मुझे परेशान करते हो … डर है कंही तुम एक दिन मेरा गला ही न दबा दो ” पत्नी ने गुस्से में एक तरफ होते हुए कहा।

“अरे नहीं डार्लिंग … ऐसा नहीं होगा … मैं तो बस ….” केशव ने सर खुजाते हुए कहा ।

“रहने दो .. एक दिन सभी किताबो को आग लगा। दूँगी देखना तुम …. कोई भी घर का काम नहीं करते बस जब देखो फोन और किताबे, कहानियाँ लिखना ..बड़े आये लेखक के ताऊ ….. मैं तो तंग हूँ तुमसे!” पत्नी ने गुस्से में कहा और उठ के बच्चों के कमरे में सोने चली गई ।

केशव भी सर झटक के फिर लेट गया तभी उसे लगा कि उसके पैर में तेज दर्द है,  उसने पायजामा उठा के देखा तो दायें पैर में हल्का सा जख्म था …. उसे समझ नहीं आया की यह जख्म कब बना … उसका दिमाग गहराइयो में उतरता चला गया ।

– संजय (केशव)

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

One thought on “कहानी : वो लाश

  • नीतू सिंह

    ह हा! बहूत खूब लिखा है।

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