गीत/नवगीत

गीत : मुस्लिम परस्त हिंदू नेता

(हिन्दू धर्म में जन्मे, लेकिन हिन्दू विरोधी और मुस्लिम परस्त राजनीति करके देश को गुलामी की ओर ले जाते नेताओं पर आक्रोश जताती मेरी नई कविता)

मौन गुलामी के दलदल में आज धंसी है भारत माँ,
यूं लगता है फिर मुगलो के बीच फंसी है भारत माँ

केसरिया झंडे मज़ार की चादर बनकर बैठे है,
रामचंद्र के बेटे खुद ही बाबर बनकर बैठे है

हिन्दू कुल में जन्मे,लेकिन ख़ान सरीखे लगते हैं,
ये भारत में तुर्क और अफगान सरीखे लगते हैं

सत्ता और वोट के लालच में इस कदर समाये है,
मक्का और मदीना में काशी गिरवी रख आये हैं

निज पुरखों की सनातनी पहचान मिटाये बैठे हैं,
भगवद् गीता फेंक,हाथ कुरआन उठाये बैठे हैं

पुनः गुलामी का तैयार मसौदा करने वाले हैं,
गजनबियों से सोमनाथ का सौदा करने वाले हैं

वेदों की छाती पर देखो फतवों की तलवारें हैं,
गायत्री के शव पर उठती जेहादी हुंकारें हैं

जिनको हिन्दू समझ रहे थे,बैठे मिले मज़ारों में,
नवदुर्गों में गायब थे पर हाज़िर हैं अफ्तारों में

इनको तुलसी से ज्यादा दरगाहें अच्छी लगती हैं,
माँ से भी ज्यादा अफज़ल की बाहें अच्छी लगती हैं

बजरंगी के भक्त मुलायम,पर आज़म से परे नही,
कार सेवकों पर गोली चलवाने से भी डरे नही

ममता की ममता में केवल घुसपैठी दंगाई है,
माँ दुर्गा की बेटी में रज़िया सुल्तान समायी है

बंग भूमि को इस्लामिक पहचान बनाकर बैठी हैं,
कलकत्ता में कितने पाकिस्तान बनाकर बैठी हैं

लालू का प्रसाद भी केवल बकरीदों में आता है,
अब नितीश का ईश खुदा का पानी भरने जाता है

अपनी अपनी राजनीति में धार लगाए बैठे हैं,
सब ऊंचे पैजामों में दरबार लगाए बैठे हैं

अब गौरव चौहान कहे, ये ढोंग रचाना बंद करो,
खुद को हिन्दू पुरखों की औलाद बताना बंद करो

शर्म बची हो तो हिन्दू दायित्व संभालो नेता जी,
या फिर खुलकर अपना भी खतना करवालो नेता जी

— कवि गौरव चौहान