कहानी

देवी मईया

” चलो भाई …जल्दी करो .. बारात का समय हो गया है … अरे ये दूल्हा तैयार हुआ की नहीं अभी तक .. कितना देर करते हो सब!!” भुल्लन दादा ने आते ही सब पर डांट मारते हुए कहा ।
“अरे चाचा….काहे इतना छटपटा राहे हो ? शादी ब्याह में इतना देर होता ही है …. अभी तक तो बैंड वाले भी नहीं आये हैं “हरिवंश ने दादा की बात पर नारज होते हुए कहा
“अरे ,दूर की बारात है हरिवंशवा …टाइम से निकल जाए तो अच्छा रहता है …. इस ससुरे बैंड वाले भी पूरा पइसा ले लेते है और देर में आते हैं …. कोई एक पइसा बक्शीश नहीं देगा इनको … आने दो ससुरो को देखता हूँ ” भुल्लन चाचा ने फिर नारज होते हुए कहा ।
“ठीक है चाचा, अभी तो तुम भी पूरा तैयार नही हुए हो जाओ जूता पहिन लो …. कम से कम आज के दिन तो ई टूटी चप्पल उतार दो ” हरिवंश ने कहा
” नया जूता है काटता है पैर को …बाद में पहनेगे … तब तक देखते हैं और बाराती तैयार हुए की नहीं… अरे ये केशवा कँहा चला गया ? भुल्लन चाचा ने जाते जाते पूछा
“माला लेने गया है … सेहरा ले आये पर नोटों की माला भूल गए वही लेने गया है…. आ रहा होगा ” हरिवंश ने कहा ।

“कोई भी काम ढंग का नहीं हो रहा है “-भुल्लन चाचा बड़बड़ते हुए बाहर निकल गए और बारात की तयारी देखने लगे ।

बात यह थी की आज संतू की शादी थी , संतु हरिवंश का लड़का था और भुल्लन चाचा हरिवंश के चाचा ।सारा गाँव भुल्लन चाचा को हरिवंश के पद से ही भुल्लन को चाचा कहता , वे जगत चाचा थे ।

थोड़ी देर में बारात में जाने वाले घर के और गांव के सभी लोग तैयार हो गए थे , बारात में जाने के लिए जीप और बस का इंतेजाम किया हुआ था ।घोड़ी वाला घोड़ी पहले ही ले आया था , बस इन्तेजार था बैंड वालो का । कुछ देर में बैंड वाले भीं आ गए उसके बाद संतू तैयार कर के घोड़ी पर बैठाया गया ,महिलाएं सज धज के गीत गाने लगीं ।बच्चे बैंड की धुन पर नाचने में मस्त हो गएँ।

अब बारात घर से निकल पड़ी , आगे आगे बैंड पीछे संतू घोड़ी पर और उसके पीछे महिलाये गीत गाती हुईं।
कुंआ पूजने के बाद बारात आगे बढ़ रही थी बीच बीच में कोई महिला या लड़की बैंड रुकवा के नाचने लग जाती , उसे नाचता देख जब कोई बाराती जेब से पैसा निकाल के न्यौछावर करने लगता तो भुल्लन चाचा अपनी छड़ी से उसे पैसे बैंड वालों को न देने का इशारा कर देते पर बैंडवाले कँहा मानाने वाले थे लपक के हाथ से ही छीन लेते ।

सब नाचते गाते गाँव के छोर तक पहुचने वाले ही थे की अगला घर था सुभौति काकी का ।सुभौति काकी पर देवी आती थीं, गाँव में जब किसी पर भूते प्रेत का साया पड़ता तो सुभौति काकी उसका इलाज देवी को अपने ऊपर बुला के करतीं , एक खौफ सा था गाँव में उनका ।

जैसे ही बारात सुभौति काकी के दरवाजे पर पहुंची की अचानक काकी घर का दरवाज़ा खोल बैंड वालो के सामने प्रकट हो गईँ ।बाल खुले , आँखे चढ़ी हुई .. भयानक रूप ।
“सब रुको वंही …..” सुभौति काकी ने भारी आवाज में कहा तो सब जड़वत वंही रुक गए ….बैंड रुक गया … सब शांत .. सब कोतूहल से एक दूसरे को देखने लगे ।
“क्या हुआ काकी ? कौनो बात है का?” संतू की माँ ने हिम्मत दिखा के पूछा ।
“बात!! बात पूछती है … तूने अनर्थ कर दिया … देवी मां को बुलाना भूल गई …शादी कर रही है … शादी….शादी में भूल गई मैया को बुलाना ” सुभौति काकी ने आँखे चढ़ा के झूमते हुए गुस्से में कहा ।
“गलती हो गई देवी मैया …भारी गलती हो गई …” संतू की माँ फट से काकी के कदमो में लोट गई जैसे कितनी बड़ी गलती कर दी हो ।
हरिवंश ने जब काकी का रूप देखा तो वह भी सहम गया और किसी अनिष्ठ की आशंका से डर तुरंत ही काकी के कदमो में पड़ गया ।

परंतु काकी का रूप और भयानक होता जा रहा था , वह जोर जोर से सर को आगे पीछे कर के झूम रहीं थी जिससे उसके बाल आगे पीछे हो रहे थे जिस कारणवह और डरावनी लग रही थी ।सभी लोग सहमे से काकी को देख रहे थे , काकी भयानक और अजीब सी आवाज निकाल के झूमे जा रही थी ।

” देवी मैया कैसे खुश होंगी …. उपाय बताओ उपाय देवी मैया … गलती हो गई हमसे … भारी गलती” संतू की माँ ने हाथ जोड़ते हुए और आँखों में आंसू लाते हुए देवी बनी काकी से मिन्नत की ।
” सजा मिलेगी इसकी …. तुझे सजा मिलेगी …तू मैया को भूल गई … मैया तुझे सजा देंगी ” सुभौति काकी ने झूमते झूमते एक पैर संतू की माँ कंधे पर रखते हुए कहा
” हमें क्षमा करो मैया …. क्षमा करो ….” हरिवंश ने काकी के पैर पकड़ते हुए कहा ।
” ह्म्म्म …. हूँ ….मैया को बली चाहिए …… पांच मुर्गो की बली …. परसाद 500 का चढ़ाना पड़ेगा …. तभी ये सादी हो सकती है नहीं तो अनर्थ होगा ” सुभौति काकी ने झूमते हुए कहा ।
“ठीक है मैया …. देंगे .. हम देंगे … अब शांत हो माई … शांत ” संतू की माँ ने गिड़गिड़ाते हुए कहा ।

केशव ये तमाशा देख रहा था , वह चुप चाप काकी के घर में गया और एक कुछ सैकेंड बाद वापस आके दरवाजे से ही चिल्लाया –
” काकीSSS…. तेरी दाल जल गई जो चूल्हे पर चढ़ी हुई है ”

काकी ने दाल जलने की बात सुनी तो उसे जैसे होश आ गया और बोली
” हायं ….दइया …दाल जल गई ” और फौरन घर में भागी ।

बस! फिर क्या था ,जो अब तक डर के मारे काँप रहें थे वे एक दम सीधे खड़े हो ।सन्तू की माँ और हरिवंस को बहुत गुस्सा आया ।भुल्लन चाचा जो अब तक डर के मारे घोड़ी के पीछे छुपे हुए थे वो अपनी झड़ी लेके काकी के पीछे भागे –
” रुक तुझे खिलाता हूँ पांच मुर्गे अभी ”

काकी ने भुल्लन चाचा को छड़ी लेके अपने पीछे आता देख फट से दरबाजा बंद कर लिया और केशव को अंदर से ही गलियां देने लगी ।

सब दुबारा हँसने लगे ,बैंड फिर बजने लगा और बारात नाचते गाते आगे बढ़ गई …

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

One thought on “देवी मईया

  • हा हा , कब छुटकारा होगा इन दकिअनूसी विचारों से इस रिशिओं मुनिओं वाले देश को ?

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