गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

दिल से जिसे चाहकर भी भुलाया न गया।
आँखों में भी उन्हें यूं फिर छुपाया न गया।

महकते गुलों की थी महकती सी खुशबू
उनसे भी ज़ख्म दिल का मिटाया न गया।

खामोशी भी रह रहकर एहसास दिलाने लगी
लफ्ज़ों के हुनर से जिसे समझाया न गया।

गैर होकर भी वो लगने लगे थे अपने से
अपने वो कैसे थे जिनसे हमें अपनाया न गया।।।

कामनी गुप्ता ***

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

6 thoughts on “गज़ल

    • धन्यवाद जी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

    • हौंसला बड़ाने के लिए धन्यवाद सर जी

  • शिप्रा खरे

    बहुत सुंदर

    • धन्यवाद जी

Comments are closed.