गीतिका/ग़ज़ल

जो रस्ते क्रूर होते/ग़ज़ल

जो रस्ते क्रूर होते, कंटकों वाले।
चला करते हैं उनपर, हौसलों वाले।

जड़ों से हैं जुड़े तरुवर, ये जो इनको
डरा सकते न मौसम, आँधियों वाले।

ये हैं बगुले भगत, जो भोग की खातिर
धरा करते वसन हैं, योगियों वाले।

बचो उन किन्नरों से, जालघर पर जो
रचाते भेस अक्सर, नारियों वाले।

सजग रहना सदा उन दुश्मनों से तुम
जो रख अंदाज़ मिलते, दोस्तों वाले।

तक़ाज़ा देश का है साथ जुट जाओ
भुलाकर भेद मस्जिद, मंदिरों वाले।

मुड़े किस ओर जाने मुल्क की किश्ती
कि कर, पतवार पर हैं लोभियों वाले।

बसाओ दिल समय है ‘कल्पना’ अब भी
कि लौटो छोड़कर घर पत्थरों वाले।

कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- kalpanasramani@gmail.com

8 thoughts on “जो रस्ते क्रूर होते/ग़ज़ल

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    सुंदर गीतिका

    • कल्पना रामानी

      हार्दिक आभार

    • कल्पना रामानी

      बहुत बहुत धन्यवाद

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर ग़ज़ल !

    • कल्पना रामानी

      हार्दिक आभार आदरणीय …

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी कल्पना जी, अति सुंदर गज़ल के लिए आभार.

    • कल्पना रामानी

      बहुत बहुत धन्यवाद लीला जी

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