कहानी

कहानी : इंतज़ार

“मालती ! देख वो आ रहा है ” शाज़िया ने मालती को कोहनी मारते हुए कहा

“ऊंहss.. ठीक है देख लिया “मालती ने लापरवाही से कहा
केशव ने कक्षा में प्रवेश किया और अपना बैग रख बिना इधर उधर देखे खाली पड़ी बैंच पर बैठ किताब निकल ली ।

शाज़िया का ध्यान अध्यापक की बातो से हट के केशव की तरफ चला गया ,वह टकटकी लगाये केशव को देखने लगी ।मालती ने शाज़िया की तरफ देखा और फिर केशव की तरफ ,पर केशव किताबो में ही गुम था उसने एक बार भी शाज़िया की तरफ नज़र उठा के नहीं देखा मालती ने अफ़सोस से अपने सर पर हाथ मारा और अपनी किताबो में देखने लगी।

शाज़िया, मालती और केशव तीनो 12th क्लास में थे और एक ही ट्यूशन सेंटर में पड़ते थे , हाँ उनके स्कूल्स बेशक अलग अलग थे ।

ऐसे ही कई महीने बीत गए , शाज़िया सच में बहुत प्यार करने लगी थी केशव से ।अगर एक दिन भी केशव क्लास मिस कर देता तो शाज़िया बेचैन हो जाती , वह मालती से तरह तरह के सवाल पूछती। चुकी मालती केशव के घर के पास ही रहती अतः शाज़िया अक्सर केशव को देखने के लिए मालती के घर आने का बहाना खोजती ।

शाज़िया केशव से नोट्स माँगती और उसको लौटने के बहाने अक्सर अपने दिल की बात लेटर की शक्ल में लिख नोट्स के बीच में रख देती ।

केशव उसे पढता पर कोई प्रक्रिया न देता केवल मुस्कुरा के रह जाता । कभी कभी शाज़िया मालती का सहारा लेती अपनी दिले हाल केशव तक पहुंचाने में पर केशव हँस के टाल देता ।

बोर्ड के एग्जाम ख़त्म हो गए थे सो ट्यूशन क्लासेस बंद हो गईं थी , शाज़िया केशव से कई दिनों से नहीं मिली थी इसलिए उसके मन में बहुत बेचैनी उठ रही थी । एक तरह से उससे रहा नहीं जा रहा था ,वह शाम के समय मालती के घर पहुँच गई और उसे अपने दिल का हाल बता केशव से मिलने की इच्छा जाहिर की ।

मालती शाज़िया की सबसे अच्छी सहेली थी और वह शाज़िया को बहुत अच्छी तरह जानती थी इसलिए डर के वावजूद उसे केशव के घर ले चल दी।शाज़िया धड़कते दिल के साथ उसके पीछे थी ।

केशव अपने कमरे में ही मिला,संयोग था की उस समय घर पर केशव अकेला था ।शाज़िया ने जब केशव को देखा तो उसके उदास चेहरा एक दम खिल उठा , केशव आश्चर्यचकित था उन्हें अपने घर में देख के । थोड़ी देर इधर उधर की बात करने के बाद मालती यह कह के कमरे से बाहर हो गई की तुम दोनों बाते कर लो।

मालती के जाते ही शाज़िया केशव के गाले से लग गई और बोली- “लव यु वैरी मच …मैं सच में तुमसे प्यार करती हूँ ”
केशव भी उसको बाँहो में भरते हुए बोला- “लव यु टू….शाज़िया… लव यु टू..मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं सकता”

“मैं तुम से शादी करना चाहती हूँ … केशव”शाज़िया ने भरी आँखों और लड़खड़ती हुई आवाज में कहा

” मैं भी तुम से शादी करना चाहता हूँ ” केशव ने कहा
पर शाज़िया को अलग करता हुआ थोडा रुक फिर बोला-
“शाज़िया … हमारी शादी अभी मुमकिन नहीं है ”
” क्यों?? शाज़िया ने आश्चर्य से पूछा
” तुम अलग धर्म की हो और मैं अलग धर्म का हमारा मिलान कैसे हो पायेगा.. समाज हमारे रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा” केशव ने ठंडी आह भरते हुए कहा

“भाड़ में जाए समाज! मैं तुम्हारे लिए सब छोड़ दूंगी” शाज़िया ने पुरे आत्म्विश्वास से कहा

“पर मैं अभी कुछ बनना चाहता हूँ …तुम जानती हो कि मैं यंहा अपनी बुआ के घर रह रहा हूँ … मेरे पिताजी ने मुझे यंहा पढ़ने के लिए भेजा है ….. और दो एक दिन में मैं यंहा से पढाई के लिए दूसरे शहर जा रहा हूँ … मैं अभी तुम्हारे लायक नहीं हूँ ” केशव ने शाज़िया का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा ।

जब शाज़िया ने केशव के जाने का सुना तो वह रोने लगी ।
“शाज़िया रोओ मत! जब मैं कुछ लायक हो जाऊंगा तो फिर मैं तुम्हारे पास आऊंगा …. तब हम दोनों शादी करेंगे ” केशव ने शाज़िया के चेहरे को दोनों हाथो में लेते हुए कहा ।

कुछ देर शाज़िया रोती रही और फिर चुप होके बोली- ठीक है केशव मैं तुम्हारा तब तक इन्तेजार करुँगी …. मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ ”

उसके बाद शाज़िया मालती के साथ चली गई, कुछ दिनों बाद केशव दिल्ली छोड़ के अनजान जगह चला गया ।

समय बीतता गया , शाज़िया ने भी अपना ध्यान पढाई में लगा लिया था और अपने मन को यह तसल्ली दे दी थी की एक दिन केशव जरूर वापस आएगा ।

आज केशव को गए हुए दस साल बीत गए थे पर केशव की कोई खबर न थी शाज़िया को की वह कँहा और किस हाल में है पर उसे यकीं था की वह एक दिन जरूर उसके पास आएगा आखिर दोनों ने प्यार जो किया था ।शाज़िया एक डॉक्टर बन चुकी थी, उसका अच्छा भला क्लीनिक था ।

इस बीच शाज़िया के घरवालो का उस पर काफी दबाब बना रहा शादी करने का पर शाज़िया कोई न कोई बहाना बना उन्हें चुप करवा देती ,कितने ताने सहे उसने अपने रिस्तेदारो के , परिवार वालो द्वारा मानसिक प्रताड़ना भी झेली एक से एक अच्छे रिश्ते आये पर शाज़िया ने सब मना कर दिए ।शाज़िया को अब भी केशव का इन्तेजार था ।

एक दिन शाज़िया अपने केबिन में बैठी मरीज देख रही थी की दरवाजे पर दस्तक हुआ । “कम इन….” शाज़िया ने कहा
दरवाजा खुला तो सामने केशव था … केशव … वह केशव जिसका इन्तेजार शाज़िया 10 साल से कर रही थी … केशव … उसका प्यार । सहसा शाज़िया को अपनी आँखों पर यकीं नही हुआ …. उसका रोम रोम रोमांचित हो गया …. वह भाग के केशव से लिपट जाना चाहती थी और ढेरों शिकायतें करना चाहती थी …. कहां थे तुम इतने दिनों से … अब आई है याद तुम्हे मेरी! ढेरों शिकायतें और उससे ज्यादा प्यार उड़ेल देना चाहती थी वह ।

“शाज़िया तुम!!…. ” सहसा केशव को यकीं नहीं हुआ की सामने शाज़िया ही है ।वह आश्चर्यचकित होता हुआ सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गया ।

बदले में शाज़िया केवल मुस्कुरा दी, वह तो उससे लिपट जाना चाहती थी और खूब रोना चाहती थी पर क्लीनिक होने के नाते कुछ न बोल सकी ।
“शाज़िया … तुम डॉक्टर बन गई हो?” केशव ने फिर पूछा
“क्यों बाहर बोर्ड पर नाम नहीं पढ़ा क्या ” शाज़िया ने हँसते हुए कहा
“अरे नहीं, पढ़ा था… पर यकीं नहीं हुआ की तुम निकलोगी … और कैसा चल रहा है सब ?” केशव ने मुस्कुराते हुए पूछा

शाज़िया के मन में आया की वह कहे की तुम्हारे बिना सब बेकार था पर अपने भावो को छुपा वह बोली ” बढिया… तुम सुनाओ … इतने दिनों बाद ?

“कुछ नहीं यार! वाइफ की तबीयत ख़राब थी … वह प्रेगनेंट है …. किसी ने बताया की तुम्हारे क्लीनिक में अच्छे डॉक्टर हैं इसलिए आ गया ” केशव ने लापरवाही से कहा ।

शाज़िया पर मानी बिजली गिर गई हो, केशव ने शादी कर ली … उसका दिल आया की वह केशव का गला पकड़ के चीखे और पूछे की तुमने शादी क्यों कर ली … तुमने तो मुझ से वादा किया था न … उसका दिल भर आया। पास पड़े पानी का गिलास एक बार में पूरा खाली कर दिया शाज़िया ने , उसे जैसे चक्कर से आ गए हों पर जल्द ही उसने अपने पर काबू पाते हुए और आंसुओ को छुपाते हुए कहा -” ओह! तो तुम्हारी पत्नी आई है साथ ?… कब की शादी तुमने?”

“6 साल हो गए….. रेलवे में नौकरी लग गई … माँ बाप का दबाब था इसलिए कर ली शादी … एक चार साल का बेटा भी है ” केशव लापरवाही से कहता जा रहा था
“अभी कुछ दिन पहले यंहा ट्रान्सफर हुआ है ” केशव ने आगे कहा ।

शाज़िया बस सुने जा रही थी , सैकड़ो आंसुओ के सैलाब लिए अपने अंदर । इतने में केशव की पत्नी अंदर आ गई , केशव केबिन से बाहर निकल गया ताकि शाज़िया उसका चेकअप कर सके ।

केशव की पत्नी वही मालती थी। उसका चेकअप करते वक़्त शाज़िया के आँखों में आंसू आ गए जिसे उसने अपने डॉक्टरी एप्रन से पोंछ लिया। फिर बाहर आ कर केशव से बोली: “बधाई हो आप बाप बनने वाले हैं, दोबारा से।”

थोड़ी देर बाद केशव फिर केबिन में आया तो शाज़िया ने उसे दवाई का पर्चा देते हुए कहा ” कई घबराने की बात नहीं सब नार्मल है ये दवाइयाँ समय पर देते रहना ”

केशव दवाइयो का पर्चा हाथ में थामे 500 रूपये शाज़िया को देने लगा तो वह नकली मुस्कुराहट लाते हुए बोली बोली -“रहने दो … पुरानी जान पहचान का इतना तो फायदा हो ”

केशव जाने लगा तो अचानक उसे कुछ ध्यान आया और उसने शाज़िया से पूछा ” शाज़िया ! तुमने शादी की या नहीं ?कितने बच्चे हैं तुम्हारे ?”

शाज़िया को लगा जैसे किसी ने उसके हरे जख्मों पर नमक रगड़ दिया हो, उसने एक क्षण आँखे बंद कीं और मुस्कुराते हुए बोली “हाँ कर ली शादी … तीन बच्चे हैं ”

– संजय ( केशव )

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

One thought on “कहानी : इंतज़ार

  • नीतू सिंह

    अच्छी कहानी है।

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