इतिहाससामाजिक

शहीद भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह और ऋषि दयानन्द

ओ३म्

 

देश की गुलामी को दूर कर उसे स्वतन्त्र कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीद भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह और दादा का नाम सरदार अर्जुन सिंह था। सरदार अर्जुन सिंह जी ने महर्षि दयानन्द के साक्षात दर्शन किये थे और उनके श्रीमुख से अनेक उपदेशों को भी सुना था। ऋषि दयानन्द जी के उपदेशों का उनके मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा था और उन्होंने मन ही मन वैदिक विचारधारा को अपना लिया था। आप जालन्धर जिले के खटकड़कलां ग्राम के रहने वाले थे। सन् 1890 में आपने विधिवत आर्यसमाज की सदस्यता स्वीकार की और आर्यसमाज की वैदिक विचारधारा सिद्धान्तों का उत्साहपूर्वक प्रचार करने लगे। आपका आर्यसमाज और वैदिक धर्म से गहरा भावानात्मक संबंध था। इसका प्रमाण था कि आपने अपने दो पोतों श्री जगतसिंह और भगतसिंह का यज्ञोपवीत संस्कार वैदिक विघि से कराया था। यह संस्कार आर्यजगत के विख्यात विद्वान पुरोहित और शास्त्रार्थ महारथी पंडित लोकनाथ तर्कवाचस्पति के आचार्यात्व में महर्षि दयानन्द लिखित संस्कार विधि के अनुसार सम्पन्न हुए थे। यह पं. लोकनाथ तर्कवाचस्पति श्री राकेश शर्मा के दादा थे जिन्होंने अमेरिका के चन्द्रयान में जाकर चन्द्रमा के चक्कर लगाये थे।

 

सरदार अर्जुन सिंह जी ने सिख गुरुओं की शिक्षाओं को वेदों के अनुकूल सिद्ध करते हुए एक उर्दू की पुस्तक हमारे गुरु साहबान वेदों के पैरोकार थे’ लिखी थी जो वर्मन एण्ड कम्पनी लाहौर से छपी थी। वह यज्ञ कुण्ड अपने साथ रखते थे और नियमित हवनअग्निहोत्र भी करते थे। उनका वैदिक धर्म व संस्कृति एवं महर्षि दयानन्द के प्रति दीवानापन अनुकरणीय था। सरदार अर्जुन सिंह जी का निधन महर्षि दयानन्द अर्धनिर्वाण शताब्दी वर्ष सन् 1933 में हुआ था। यह स्वाभाविक नियम है कि पिता के गुण उसके पुत्र में सृष्टि नियम के अनुसार आते हैं। पिता प्रदत्त यह संस्कार भावी संन्तानों में पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं। महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश और आर्याभिविनय में देश भक्ति की अनेक बातें कहीं है जिसका प्रभाव उनके अनुयायियों पर पड़ा। हमारा अनुमान है कि दयानन्द जी की देशभक्ति के गुणों का संचरण परम्परा से सरदार अर्जुन सिह जी व उनके परिवार में हुआ था।

 

-मनमोहन कुमार आर्य

8 thoughts on “शहीद भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह और ऋषि दयानन्द

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी जानकारी ! यह सत्य है कि भगत सिंह का सारा परिवार आर्य समाजी विचारों से प्रभावित था और भगत सिंह पर भी उसका पर्याप्त प्रभाव था.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी जानकारी ! यह सत्य है कि भगत सिंह का सारा परिवार आर्य समाजी विचारों से प्रभावित था और भगत सिंह पर भी उसका पर्याप्त प्रभाव था.

    • मनमोहन कुमार आर्य

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री विजय जी। यथार्थ एवं उत्कृष्ट प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद। आर्य समाज असत्य रूपी रोग को दूर करने तथा सत्य रूपी औषध के सेवन कराने का एक आंदोलन मात्र है जिससे मानव समाज स्वस्थ वा सुखी रह सके। आज भी बड़े बड़े पढ़े लिखे लोग आर्यसमाज के यथार्थ स्वरुप को समझ नहीं पाएं हैं और वह मत मतान्तरों को ही अच्छा समझते हैं। सादर।

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, यह सही है, कि पिता के गुण उसके पुत्र में सृष्टि नियम के अनुसार आते हैं. अति सुंदर आलेख के लिए आभार.

    • मनमोहन कुमार आर्य

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी। अति उत्कृष्ट प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद।

  • मनमोहन भाई , लेख अच्छा लगा . मेरे विचार में आज से अस्सी नवे साल पहले सिखों के विवाह भी ज़िआदा तर वेदी पर ही होते थे लेकिन १९२१ में ननकाना साहब के साके के बाद, नाराएन्न दास के गुरदुआरे पर काबज़ हो कर अयाशी करने और सिखों के एजिटेशन के समय बहुत सिखों को मार देने के बाद ही गुरदुआरा सुधार लहर तेज़ हुई थी , जिस के नतीजे में सिखों के दिलों में यह खदशा पैदा हो गिया की हिन्दू उन को ख़तम करना चाहते हैं जिस का नतीजा अब की धार्मिक कट्टरता है .

  • मनमोहन भाई , लेख अच्छा लगा . मेरे विचार में आज से अस्सी नवे साल पहले सिखों के विवाह भी ज़िआदा तर वेदी पर ही होते थे लेकिन १९२१ में ननकाना साहब के साके के बाद, नाराएन्न दास के गुरदुआरे पर काबज़ हो कर अयाशी करने और सिखों के एजिटेशन के समय बहुत सिखों को मार देने के बाद ही गुरदुआरा सुधार लहर तेज़ हुई थी , जिस के नतीजे में सिखों के दिलों में यह खदशा पैदा हो गिया की हिन्दू उन को ख़तम करना चाहते हैं जिस का नतीजा अब की धार्मिक कट्टरता है .

    • मनमोहन कुमार आर्य

      ऋषि दयानन्द ने हमें यह शिक्षा दी है कि हमारे धर्म में कितने ही अन्धविश्वास वा बुराइयां क्यों न आ जाए परन्तु सर्वोत्तम मार्ग ज्ञान व प्रेम पूर्वक उसका सुधार करना ही होता है। इसके लिए यदि प्राण भी देने पड़े तो दे देने चाहिए। दयानन्द जी, पंडित लेखराम जी, स्वामी श्रद्धानन्द जी, महाशय राजपाल जी आदि अनेक महापुरुषों ने समाज के लिए अपने बलिदान किये। यदि हम टूटेंगे तो हमारे शत्रु इसका फ़ायदा उठाएंगे। ऐसा अतीत में भी हुआ है और वर्तमान में भी हो रहा है। प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद।

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