लघुकथा

लघुकथा : एक और द्रौपदी

जब पत्ते खोले गए तो मोहन के होश उड़ गए। इस बाजी के साथ वह अपना सब कुछ गंवा चुका था। एक चाल में दो हज़ार रुपए जीतने के बाद वह लगातार हार रहा था। अपनी मेहनत की कमाई के दस हज़ार रूपये, अपना खोमचा, अपनी घरवाली के चाँदी के गहने।
” अब क्या लगाते हो दाँव पर चचा ” राजा धूर्तता से मुस्कुराया।
” अब मेरे पास बचा ही क्या है ? सब कुछ तो हार गया ” वह रुआँसा हो गया।
” एक चीज़ अब भी है तुम्हारे पास ”
” क्या ” वह हैरान रह गया।
” तुम्हारी घरवाली ”
मोहन ने आवेश में आकर उसका गिरेबान पकड़ लिया।
” दोबारा ये बात जबान से बाहर निकाली तो मुझसे बुरा कोई न होगा।”
राजा ठठाकर हँस पड़ा और जोर देकर समझाया की कई बार किसी की किस्मत दूसरे का भाग्य बदलकर रख देती है।अंततः मोहन खतरा उठाने को तैयार हो गया इस लालच में कि शायद किस्मत अब उसपर मेहरबान हो जाए।देवी माता का नाम लेकर पत्ते देखे तो भूमण्डल घूमता नज़र आया।
राजा छाती चौड़ी करके और मोहन  लटका हुआ मुँह लेकर अपने घर गया।सब जानकर हमेशा खामोश रहने वाली सुगना पर मानो माँ चण्डी सवार हो गई ।
” तू आदमी है या जिनावर, जिसे अपनी औरत की रक्छा  करनी चाहिए वही उसे दाँव पर लगा बैठा ? आक थू ” कहते हुए उसने मोहन के सामने ज़मीन पर थूक दिया, और फिर हँसिया उठाते हुए राजा की ओर देखा
” देखती हूँ किस माँ के जाए में इतनी हिम्मत है जो मुझे हाथ लगाए ” फुफकारते हुए हँसिए को देखकर राजा के होश उड़ गए और उसने चुपचाप खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझी।

                                            — ज्योत्सना सिंह 

ज्योत्सना सिंह

नाम- ज्योत्सना सिंह । जन्म- 1974 शिक्षा- एम.ए.( अंग्रेजी साहित्य) बी.एड. व्यवसाय- कई वर्ष तक पब्लिक स्कूलों में शिक्षण कार्य। वर्तमान शहर- बरेली । फ़ोन न- 9412291372 मेल आई डी- jyotysingh.js@gmail. com विधाएँ - कविताएँ, लघुकथा, कहानी, निबन्ध लेख । प्रकाशन- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित।

One thought on “लघुकथा : एक और द्रौपदी

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा !

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