लघुकथा

लघुकथा : बिडम्बना

बाल श्रम उन्मूलन सप्ताह की कवरेज करके सहकर्मी राकेश के संग लौट रहा सुमित उमंग और जोश से लबरेज़ था।
” सरकार के इस कदम की जितनी प्रशंसा की जाए कम है । कम से कम भोले भाले मासूमों का बचपन तो न छीन पाएगा कोई अब। “

         एक झोपड़ पट्टी के पास से गुज़रते हुए जमा भीड़ और एक फटेहाल स्त्री का उच्च स्वर में रुदन सुनकर वह रुक गया

       ” आग लग जावे इस सरकार को, अच्छा भला मेरा मुन्ना काम करके चार पैसा कमा लेवे था। पन सज़ा के डर से काउ ने बाए काम पर न रखो। का करता बेचारा ?पेट की आग बुझावे की खातिर चोरी कर बैठा, और कम्बखत पुलिस पकड़कर लै गई।अरे जब काम ही न मिले तो कोई चोरी न करे तो का करे ? “

      कुछ पल पहले उन बाल श्रमिकों के लिए आर्द्र होता सुमित अब धड़ाधड़ भीड़ और उस महिला की फोटो खींचे जा रहा था। कल के समाचारपत्र के लिए एक नई खबर मिल चुकी थी।

                                  — ज्योत्सना

ज्योत्सना सिंह

नाम- ज्योत्सना सिंह । जन्म- 1974 शिक्षा- एम.ए.( अंग्रेजी साहित्य) बी.एड. व्यवसाय- कई वर्ष तक पब्लिक स्कूलों में शिक्षण कार्य। वर्तमान शहर- बरेली । फ़ोन न- 9412291372 मेल आई डी- jyotysingh.js@gmail. com विधाएँ - कविताएँ, लघुकथा, कहानी, निबन्ध लेख । प्रकाशन- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित।

One thought on “लघुकथा : बिडम्बना

  • विजय कुमार सिंघल

    बढिया !

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