लघुकथा

लघुकथा : सुख

” ऐसे मायूस क्यूँ नज़र आ रहे हो हेमन्त ?”
” कुछ नहीं संजय-सोच रहा हूँ की आखिर सुख की परिभाषा क्या है ”
” तो क्या निष्कर्ष निकाला ?”
” तू तो सब जानता है -की बचपन कितना तंगी में गुज़रा-हम सब साथ थे-पर एक एक चीज़ के लिए तरसते थे-तब निश्चय किया की इतनी दौलत कमाऊँगा की जो चाहे हासिल कर सकूँ-और आज बेशुमार दौलत है मेरे पास ”
” तो फिर परेशानी का सबब क्या है ?”
” मैं यहाँ एकाकी बैठा हूँ और मेरा परिवार अपने अपने सुखों की तलाश में है ”

ज्योत्सना 

ज्योत्सना सिंह

नाम- ज्योत्सना सिंह । जन्म- 1974 शिक्षा- एम.ए.( अंग्रेजी साहित्य) बी.एड. व्यवसाय- कई वर्ष तक पब्लिक स्कूलों में शिक्षण कार्य। वर्तमान शहर- बरेली । फ़ोन न- 9412291372 मेल आई डी- jyotysingh.js@gmail. com विधाएँ - कविताएँ, लघुकथा, कहानी, निबन्ध लेख । प्रकाशन- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित।

One thought on “लघुकथा : सुख

  • लघु कथा अछि लगी ,इंसान की यही तो विडंबना है की ना अमीरी में सुख ना गरीबी में .

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