गीत/नवगीत

फैला प्रचलन गन्दा

चारों तरफ जगत में फैला, प्रचलन कितना गन्दा है।
पुतला फूँक रहे हैं लेकिन, रावण फिर भी जिन्दा है।
सीता रूपी बेटी कैसे,रोज यहाँ हर जाती है।
मानवता तक मानव की जाने कैसे मर जाती है।- 1

उस पर मेवा मिसरी चढती, जो पत्थर की मूरत है।
भूखे नित सोते देखे जिनमें भगवन की सूरत है।
राम नाम पर जिस दानी के, लंगर नित ही चलते हैं।
जाने क्यों माँ बाप उसी के, वृद्धाश्रम में पलते हैं।- 2

तन पर कपडे नही मगर दरगाह पर चादर पड़ती है।
मानव मारे जीव यहाँ नित, बली गाय की चढ़ती हैं।
निज मजहब की खातिर लाखों, लास जहाँ उठ जाती है।
लव जिहाद में फसकर क्यों लाखों बेटी लुट जाती हैं।- 3

चर्च हमेशाँ रोशन होकर, जग मग जग मग खिलता है।
लेकिन लाखों घर है जिनमे, दीपक भी ना जलता है।
मातृभूमि से पहले “चाहर”, मजहब को गर लायेगें।
मानव भी इस जग में बनकर, पत्थर ही रह जायेगें।-4

शिव चाहर मयंक
आगरा

शिव चाहर 'मयंक'

नाम- शिव चाहर "मयंक" पिता- श्री जगवीर सिंह चाहर पता- गाँव + पोष्ट - अकोला जिला - आगरा उ.प्र. पिन नं- 283102 जन्मतिथी - 18/07/1989 Mob.no. 07871007393 सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन , अधिकतर छंदबद्ध रचनाऐ,देश व विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित,देश के अनेको मंचो पर नियमित कार्यक्रम। प्रकाशाधीन पुस्तकें - लेकिन साथ निभाना तुम (खण्ड काव्य) , नारी (खण्ड काव्य), हलधर (खण्ड काव्य) , दोहा संग्रह । सम्मान - आनंद ही आनंद फाउडेंशन द्वारा " राष्ट्रीय भाष्य गौरव सम्मान" वर्ष 2015 E mail id- schahar83@gmail.com