लघुकथा

लघुकथा — गलती

प्रदेश भर में छोटी-बड़ी, जवान -प्रौढ़ ,यहाँ तक कि इक्का दुक्का बुजुर्ग नारी के साथ जबरदस्ती करने की घटनाओं की बाढ़ सी आ गई। प्रिंट और इलेक्ट्रिक मिडिया हल्ला करने में एक दूसरे से होड़ लेते लग रहे थे।किसी भी दिन के समाचार बिना बलात्कार की खबर के पूरे ही नहीं हो रहे थे। नारी वादी संगठनों में आक्रोश का उबाल हिलोरें ले रहा था। आए दिन धरना प्रदर्शन किये जा रहे थे। देश भर से राजनैतिक पार्टियों के बड़ी हैसियत दार लोग टी वी के द्वारा बलात्कारियों को शीघ्र पकड़ कर कड़ी से कड़ी सजा देने की माँग करने का दौर जारी था। कि एक दिन प्रभावित प्रदेश के शासकीय पार्टी के पितामह नेता जी टी वी पर ज्वलंत इस मुद्दे पर इन्टरव्यू दे रहे थे , इंटरव्यू कर्ता ने पूछा —
” नेता जी ,प्रदेश में बढ़ती वारदात के मद्दे नजर देश की अधिकाँश जनता बलात्कारियों को फाँसी की सजा देने की मांग कर रही है , आपकी क्या राय है इस विषय में ? ” नेताजी बड़ी सहजता से बोले –
” देखिये मेरा मानना है कि फाँसी की सजा देना उचित नहीं होगा ,.. लड़के हैं .. ,अक्सर लड़कों से गलतियाँ हो ही जाती हैं, इतनी सी गलती के लिए … ” लाइट चली गई थी। अल सुबह उनकी पोती अस्त – व्यस्त हो रहे कपड़ों में कार से अपने कुछ दोस्तों के सहारे से उतर कर लड़खड़ाते क़दमों से घर में घुसी तो नेता जी का पारा हाई हो गया,-
” ये कैसी हालत बना रखी है, इस समय कहाँ से आ रही हो ? ”
” दादा जी , फ्रेंड की बैर्थडे पार्टी थी ना वहीं पर देर गई ” मित्रों ने बताया।
” और ये वाहियात हुलिया ” नेता जी दहाड़े।
” दादा जी वहाँ पर कुछ लड़के भी थे ,… उनसे गलती हो गई। ”

— मँजु शर्मा — २१-५ -२०१६

2 thoughts on “लघुकथा — गलती

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी मंजु जी, अति यथार्थ व सार्थक लघु कथा के लिए आभार.

  • करारी चोट !!!!!!

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