कहानी

“कहानी”

“शादी नहीं, समझौता है”

यूं तो आज मोना के जिंदगी का सबसे खुशी का दिन है पुत्र रत्न की प्राप्ति जो हुई है। ऐसे खुशी के मौके पर उतरा हुआ चेहरा देखकर नर्स ने पूछा अरे आप आज उदास क्यों हैं। चिंता मत करिए दीदी मैं आप से नेग नहीं मागूंगी लेकिन आप खुश रहिए, देखिये न कितना सुंदर लाड़ला दिया है भगवान ने आप की झोली में,, किसी की नजर न लगे। कहते हुये अपने आँखों का काजल लेकर नवजात के माथे पर काला टीका लगा देती है। दुखती रग पर अपनत्व का हल्का सा अहसास होते ही मोना की आँखों का सुसुप्त ज्वालामुखी आँसू बनकर बाहर निकल पड़ता है। वह नर्स शायद इन अप्रत्याशित आंसुओं के लिए तैयार न थी और घबरा कर पूछने लगी, क्या हुआ, मुझसे कोई चूक हो गई क्या?। मोना अपने आप को स्म्हालते हुए, अरे पगली इला कुछ भी तो नहीं है, तुझे देख मुझे मेरी चारों बहनों और मम्मी-पापा की याद आ गई जो अब मुझसे बहुत ही दूर हो गए हैं खैर छोड़ अब क्या याद करना। इला की जिज्ञासा बढ़ गई और उसने पूछा दीदी बताओ न अपने परिवार बारे में। ऐसे शुभ मौके पर यहाँ कोई क्यों नहीं आया क्या आप अपने पति के साथ अकेली ही रहती हो, इत्यादि इत्यादि।
असमंजस की मूर्ति मोना लंबी सांस खिचते हुये, बहुत लंबी दास्तान है मेरी बहना। जिंदगी कब, किसको, किस मोड़ पर ला खड़ी कर दें यह कोई नहीं जनता है। मेरे मम्मी-पापा को ही देख ले, कभी सपने में भी किसी का बुरा नहीं चाहा होगा। पर हाय रे जीवन के दिन, आज तक उन्हें सुख-शांति नशीब न हुई। पाँच लड़कियों के बाप हैं। सबको बड़े प्यार से पाला, पढ़ाया, लिखाया। बड़ी दीदी की शादी बड़े धूम-धाम से की, जो आज बहुत ही खुशी का जीवन गुजार रही हैं। दूसरी दीदी की शादी भी उसी उल्लास और उसी ठाट-बाट से किए पर पैसों के लालचियों ने दीदी का जीना हराम कर दिया। दोनों के तनाव में उनकी शादी टूट गई, वह अब पापा के साथ ही रहती हैं। नफरत हो गई उन्हें शादी और पति शब्द से। तीसरी दीदी ने प्रेम विवाह किया। कुछ दिन तो लगा कि प्रेम विवाह ही सबसे उचित है। जबकि पापा ने इसका बहुत विरोध भी किया थ। घर की माली हालात खराब होने की वजह से उन्हें मूक सहमति मिल गई और दीदी की खुशी मेरे परिवार में एक दृष्टांत बन गई। रास्ता खुला तो चौथी दीदी की नजर भी किसी से मिल गई और उनका भी घर बस गया। परिवार को लगा की अब खुशी का आगमन हो रह है। अभी एक साल भी न बीता कि तीसरी दीदी के पति ने अपना असली रूप दिखान शुरू कर दिया और खुशी काफ़ुर हो गई, सब सक्ते में आ गए। वो लोग दीदी को पैसे के लिए पराए पुरुष के पास जाने के लिए मजबूर करने लगे जिससे वो घर छोडकर कहाँ गई आज तक किसी को पता न चल पाया। चौथी दीदी के पति एक नंबर के ऐयास निकले और नई नई लड़कियों की महफिल दीदी के बेडरूम तक पहुँचने लगी। तंग आकर दीदी अपना जीवन अपने ढंग से जीने को बाध्य हो गई और नौकरी करके अकेले ही अपना समय काट रही हैं। अब मेरी भी सुन लो, यह सब देखकर मैंने फैसला किया कि शादी ही नहीं करूंगी और पापा-मम्मी के साथ उनका सहारा बनकर भाई की कमी को पूरी करूंगी। पापा को यह बात ठीक न लगी उन्होने बहुत समझाया और कहाँ जीवन बिना साथी के नहीं कटता, तुम भी कोई न कोई जीवन साथी ढूंढ लो, जो होना है वह तो होगा ही, किसी का उदाहरण किसी के काम नहीं आता। मैं नौकरी कर ही रही थी कि श्याम मेरे जीवन में आया और हम लीव इन रिलेशन में रहने लगे उसी का नतीजा है, आज की यह मेरी नन्ही सी खुशी। श्याम मुझसे बहुत प्रेम करता है पर उसके घर वाले मुझे किसी भी कीमत पर स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। उसकी शादी अपने तरह से करने को अमादा हैं, मैं खुद ही मझदार में गोता लगा रही थी, डुबना तय ही था कि यह बच्चा मेरे जीवन का सहारा बनकर आ गया है देख किस किनारे लगती हूँ। इला कई तरह कि जीवनी सुनकर चिंतित हो जाती है, कहती है, दीदी, अब मैं क्या करूँ, मैं भी किसी के प्रेम में हूँ और पापा अपने समाज में लड़का देख रहें हैं, कल का क्या निर्णय लूँ आप ही मदत करो। मोना कुछ गंभीर होकर……इला जीवन जीना इतना आसान नहीं है। गृहस्थ जीवन में शादी की पुरानी प्रथा ही सर्वोत्त्म दिख रही है। आदि से लेकर आज तक वही सबसे सफल है। अत: तुम अपने समाज में अपने माता-पिता द्वारा देखे गए रिश्ते को हर तरह से देख-परख कर, संतुष्ट होकर, अगर उचित लगे तो कदम आगे बढ़ाओ। अन्यथा समाज में ही दुसरे किसी लड़के के लिए प्रयास करो। मेरी समझ में इससे बढ़िया विधान अभी तक कोई भी नहीं है जिसके माध्यम से जीवन की गाड़ी पूरी जिंदगी किसी एक खूँटे से बधकर चली हो।
किसी की आहट होती है और दोनों का ध्यान उधर को जाता है। श्याम है अंदर आता हुआ, उसके आते ही उसके फोन की घंटी बज उठती है। हाँ पापा बोलिए……. उधर की आवाज केवल श्याम सुनता है और जबाब इन दोनों के कानों तक पाहुचता है…..नहीं मैं कल नहीं आ सकता……बहुत व्यस्त हूँ…..कहा न, नहीं आ सकता……कुछ रुककर……ठीक है, मैं कल आता हूँ पर लड़की देखकर वापस आ जाऊंगा, किसी भी कीमत पर शादी नहीं करूंगा। देखिये पापा, आप जबरदस्ती कर रहें हैं, जब कोई लड़की मुझे पसंद आ गई है तो मैं किसी दूसरे से शादी कैसे कर सकता हूँ। चलिये आप का मान रखने के लिए कल आता हूँ। झुंझलाहाट का नाटक…….श्याम, मोना से मुखातिब होता है……लगता है उन लोगों को समझाने के लिए एक बार वहाँ जाना ही पड़ेगा पर तुम निश्चिंत रहों मैं अपने राह से नहीं भटक सकता हूँ। दो दिन बाद श्याम वापस आता है और मोना को अपनी होने वाली पत्नी का फोटो दिखाता है, जो बेहद खूबसूरत है। क्या कहती हो, कैसी है, बहुत दबाव पड़ रहा है, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मोना एक स्त्री है सब समझ जाती है और चुप हो जाती है। इतने में इला डिसचार्ज का बिल लेकर कमरे में दाखिल होती है। मोना अपने बैग से पैसे निकालती है पर श्याम बिल लेकर बाहर निकल जाता है। मोना इला से कहती है एक गाड़ी बुला दो मेरी बहन, मेरा पूरा सामान उसी में रखवा दो। मोना, श्याम को कहती है मैं अपने पापा के घर जा रही हूँ अब कभी भी मेरा संपर्क मत करना और गाड़ी में अपने बच्चे को लेकर बैठ जाती है। श्याम कुछ कहता इसके पहले गाड़ी चल देती है और मोना अपने रास्ते पर ओझल हो जाती है। अपने घर का दरवाजा खटखटाती है, दूसरी नंबर की बहन छाया को देखकर कटे हुये वृक्ष की भांति उसके आगोश में गिर पड़ती है। घर सन्नाटे में कसक उठता है और बाप के जगह बच्चे को एक और माँ मिल जाती है।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ