लघुकथा

अपना-अपना नज़रिया


बेटा खाना खाकर जूठी थाली रखने रसोईघर में आया. तभी उसकी नज़र दो चींटों पर गई. मां से बोला, :” ममी ममी, देखो छोटे चींटे ने बड़े चींटे की टांग पकड ली है और उसे घसीटकर ले जा रहा है, मज़ा आ गया.” मां बोली, ” बेटा, ऐसी बात नहीं है. बड़ा चींटा अपने बेबी चींटे को सुरक्षित जगह पर ले जा रहा है.” बेटा न जाने क्या सोचता हुआ रसोईघर से बाहर चला गया. शायद मां की ममता और संतान के अनुपम-अनोखे-सलोने प्यार भरे रिश्ते पर, जिस पर केवल एक मां की ही नज़र जा सकती है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

10 thoughts on “अपना-अपना नज़रिया

  • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

    बहुत सुन्दर भाव . बधाई आदरनीय .

    • लीला तिवानी

      प्रिय ओमप्रकाश भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • Man Mohan Kumar Arya

    लघु कथा अच्छी लगी. नमस्ते एवं धन्यवाद बहिन जी।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • नीतू सिंह

    बढियां

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी नीतू जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी नीतू जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • लघु कथा बहुत अछि लगी . माँ की ममता का पता इन जानवरों से ही चल जाता है कि यह अपने बच्चे के कितना नज़दीक होतें हैं ,हमारी माएं तो फिर भी इंसान हैं . इस का कारण शायद यह ही हो कि बचा माँ के शरीर का ही हिस्सा होता है , और बच्चे को चोट पहुंचे तो वोह सीधी माँ को पहुँचती है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, मां तो बस मां ही होती है. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, मां तो बस मां ही होती है. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

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