गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल- जब परदेश कमाने निकले

जब दर्दे-दिल गाने निकले.
अपनों में बेगाने निकले.
एक ज़रा सी बात कही थी,
जाने कितने माने निकले.
ख़ुद न समझ पाये वे कुछ भी,
दुनिया को समझाने निकले.
एक शमा को जलते देखा,
घर-घर से परवाने निकले.
उँगली किसकी ओर उठाते,
सब जाने-पहचाने निकले.
भोले-भाले दिखने वाले,
सारे लोग सयाने निकले.
घर में कितना छूट गये हम,
जब परदेश कमाने निकले.

डाॅ. कमलेश द्विवेदी
मो. 9415474674

2 thoughts on “ग़ज़ल- जब परदेश कमाने निकले

  • लीला तिवानी

    अति सुंदर ग़ज़ल के लिए आभार.

  • अर्जुन सिंह नेगी

    डाक्टर साहब बेहद सुन्दर गजल के लिए बधाई

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