कवितापद्य साहित्य

~~बेटा ! तू क्या समझेगा~~

बेटा !
तू क्या समझेगा
माँ की वेदना कभी
तू बेटा है अभी
बाप बनेगा कभी
पर माँ नहीं बन पायेगा |
बिन माँ बने कैसे समझेगा
माँ की भावनाएं
कैसे दर्द को उसके
अपने अंतःकरण से
महसूस कर पायेंगा |
ढ़ेर सारी तकलीफ सह
जन्म दिया उसने
नाज-नखरे उठा तेरे
किया था बड़ा उसने |
जब वही अकाल ही
काल के गर्त में
समां जाता है
कितना कष्ट होता है
तू क्या समझेगा ?
आँख से पानी नहीं खून रिसता है
दिल भी पल-पल हर क्षण रोता है |
दिखे तुम्हें अश्रु भले ही ना
पर आँखे भर आती है
हर क्षण, पल पल
याद कर वह लम्हां |
शरीर क्या वह तो
लाश बन रह जाती है
तेरे लिए ही बस
सब कुछ सह जाती है |
बेटा !
तू क्या समझेगा
कभी माँ की बेदना
माँ को बहुत कुछ
पड़ता है सहना ..
बहुत ही सहना …
ऐसे मंजर ना हो घटित
कभी किसी माँ के जीवन में
बस कर सकना तो यही
प्रार्थना तुम!
प्रभु के आगे सदैव करना || .सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|