मुक्तक/दोहा

कुछ मुक्तक

आज फिर याद है तेरी आई
कैसे कह दूं कि तू नहीं आई
हमसफर हो जा मेरे हमदम
तू न कर यार मेरी रुसवाई

रह रह कर तेरी आती क्यों है
आके सारी रात जगाती क्यों है
सच में न सही ख्वाब में ही आ
अब यार मेरे तू सताती क्यों है

ऐ दोस्त तू ही तो जीने का सहारा है
इस दुनिया में कौन अब हमारा है
तू मिल जाये तो मिले जग की खुशी
तू ही मेरा चांद और सितारा है

अरुण निषाद

 

डॉ. अरुण कुमार निषाद

निवासी सुलतानपुर। शोध छात्र लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। ७७ ,बीरबल साहनी शोध छात्रावास , लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। मो.9454067032

3 thoughts on “कुछ मुक्तक

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    रह रह कर तेरी आती क्यों है

    आके सारी रात जगाती क्यों है

    सच में न सही ख्वाब में ही आ

    अब यार मेरे तू सताती क्यों है खूब बहुत.

    • अरुण निषाद

      Sadar pranam sir ji

      • अरुण निषाद

        साभार धन्यवाद

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