स्वाति बूँद मोती बने , कंचन बने शरीर
बूँद बूँद सागर भरे , यति गति संग समीर
रहा कभी टेथीज जो पड़ा हिमालय नाम
शब्द बूँद महिमा अमित -जनजीवन जस नीर
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
स्वाति बूँद मोती बने , कंचन बने शरीर
बूँद बूँद सागर भरे , यति गति संग समीर
रहा कभी टेथीज जो पड़ा हिमालय नाम
शब्द बूँद महिमा अमित -जनजीवन जस नीर
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
तुझे छोड़ न जाऊँ री सैयां न कर लफड़ा डोली में। क्या रखा है इस झोली में जो नहीं तेरी ठिठोली में। आज के दिन तूँ रोक ले आँसू नैन छुपा ले नैनों से- दिल ही दिल की भाषा जाने क्या रखा है बोली में॥-1 “मुक्तक” 2122 2122 2122 2122 दर किनारे हो गए जब […]
परिष्कृत कर लो अपने पुराने शब्दकोष को कोष से बाहर करो सब नकारात्मक शब्दों को “असमर्थ,अयोग्य हूँ” का सोच है प्रगति के बाधक जड़ न जमने दो मन में कभी, इन विचारों को | XXXXXX हर इंसान में “डर” है दो धारी तलवार यही उत्पन्न करता है नकारात्मक विचार कभी-कभी इंसान को रोकता है भटकन […]
शब्द — जीभ, रसना ,जिह्वा ,वाणी, जुबान रसना रस की पारखी, घेरे रहते दाँत बिगड़ी जीभ भली नहीं, चोटिल होते आँत जिह्वा वाणी माधुरी, मीठे मीठे स्वाद शहद भरी जुबान बड़ी, बैठे अपनी पाँत॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी