संस्मरण

मेरी कहानी 140

संदीप की शादी जसविंदर के साथ हो गई थी और जब हम घर पहुंचे तो कुलवंत ने सारे शगुन किये। घर में अब रीटा पिंकी और कुछ अन्य लोग रह गए थे। अब हमारा काम कुछ नहीं था और हम कुछ दोस्त रिलैक्स होने के लिए बाहर को चल पड़े, बैगट आरमज पब नज़दीक ही था। गर्मिओं के दिन थे और हम बाहर गार्डन में अपने अपने ग्लास हाथ में पकडे आ कर बैठ गए। रफ लकड़ी के बने बहुत से बने बैंच और टेबल थे। गोरे गोरीआं मुख़्तसर कपड़ों में बैठे बियर पी रहे थे और उन के बच्चे नज़दीक ही खेल रहे थे। गर्मिओं में दस साढ़े दस वजे तक लौ रहती है और इसी वक्त लोगों को दो हफ्ते की समर हॉलिडे भी होती हैं, इसी लिए सब पब्ब भरे हुए होते हैं और आज भी ऐसा ही था। खूब बातें की पब्ब बंद होने तक हम बैठे गप्पें हांकते रहे।

                 अब हम घर में तीन से चार हो गए थे। जसविंदर जल्दी ही घर में ऐसे हो गई थी जैसे वह पहले से ही हमारे घर में रहती थी और सब से ख़ुशी वाली बात यह थी कि मैं एक ससुर होते हुए भी कुछ भी अजीब महसूस नहीं कर रहा था क्योंकि जसविंदर आते ही घुल मिल गई थी। दूसरे दिन हम सब ने जसविंदर को लेकर उन के घर जाना था। तैयार हो कर बारह एक वजे हम जसविंदर के घर चले गए। जब हम जसविंदर के घर पहुंचे तो दरवाज़े पर हमारा स्वागत किया गया और सभी रिश्तेदारों को नज़दीक से मिलने का अवसर मिला। औरतें भीतर सत सिरी अकाल, सत सिरी अकाल करके हंसने लगी और हम मर्द लोग बाहर गार्डन में आ कर बैठ गए यहां मेज कुर्सियां सजे हुए थे। हरजिंदर सिंह के तीन भाई उनसे छोटे हैं और यह सभी भाई दोस्तों की तरह रहते हैं। पिंकी और रीटा भी अपने परिवारों के साथ आई थीं। आज भी दिन बहुत अच्छा था, धुप खिली हुई थी, 25 या 26 डिग्री तापमान होगा जो सभी के चेहरों पर रौनक ला रहा था। हरजिंदर सिंह भी आज बहुत खुश था और हर एक के ग्लास में बीयर डाल रहा था। जब सब के ग्लास भर गए तो एक एक करके सभी ने उठा लिए और चीअरज करके पीने लगे। किसी ने पीनट्स का पैकेट खोला  किसी ने क्रिस्प्स का और बातें करने लगे। हरजिंदर का छोटा भाई तो जोक छोड़ने में सब से आगे था और हम भी क्या कम थे। हरजिंदर मेरे साथ ही बैठा था और हम में समधीओं वाली कोई बात है ही नहीं थी। हमारे जमाई भी साथ ही बैठे थे और इन सब लड़कों ने जसविंदर के भाई पदीप के साथ अपना ग्रुप बना लिया। इस मिलनी से हम सब नज़दीक हो गए, कोई संकोच की बात है ही नहीं थी और हम ऐसे थे जैसे किसी क्लब्ब में बैठे हों।
इस शादी से पहले मेरा और हरजिंदर  का मिल्न गुर्दुआरे में हुआ था। उस दिन हमारी इतनी बातें हुई थीं कि हरजिंदर सिंह मेरे साथ खुल गया था। क्योंकि हरजिंदर की चार बेटियां हैं और अभी बड़ी बेटी की शादी ही पहले हुई थी जिस के साथ कुलवंत, सदीप का रिश्ता करना चाहती थी और यह शादी करके हरजिंदर कुछ अजीब महसूस कर रहा था, एक बोझ सा उस के मन पर था। उस दिन हमारी बहुत बातें हुईं थी। हरजिंदर बोला था,” भा जी ! मैं तो यह कहता हूँ, रब्बा ! मुझे इस जून में दुबारा ना भेजना, भले ही किसी जानवर की जून दे देना “, वह कुछ जज़्बाती हो गए थे। इस के बाद मैंने बहुत बातें की थी। मुझे सभी बातें याद नहीं लेकिन इन के अर्थ यह ही थे कि लड़के वाले, लड़की वालों पे अपर हैंड क्यों रखते हैं। हरजिंदर सिंह के लफ़ज़ यह थे जो मुझे कभी भूले नहीं,” भा जी ! सब लोग आप जैसे क्यों नहीं हो जाते “, बस इस मिलनी के बाद ही हरजिंदर मेरे साथ बहुत खुश खुश रहने लगा था और आज उन के घर बैठा उस की ख़ुशी को अनभव कर रहा था। हरजिंदर ने रैड लेवल की बोतल उठाई, दो ग्लासिओं में डाली, कुछ सोडा और आइस क्यूब डाले और एक ग्लॉसी उठा कर मेरे हाथ में पकड़ा दी। अपनी गलसी उठा कर मेरी ग्लॉसी के साथ टकराई  और हम ने सिप लिए। हरजिंदर ने अपनी कलाई मेरे कंधे पर रखी और बोला, ” ओ भा जी, आज मैं बहुत खुश हूँ “, और हम ने बहुत बातें की। हरजिंदर का छोटा भाई जसवीर बोल पड़ा, ” ए भाई साहब, बातें ही करते रहोगे या पीओगे भी कुछ ! और हम ने ग्लासीआं उठा कर पी लीं। खूब ठहाके चल रहे थे, जोक पे जोक चल रही थी और अब मैंने बोतल उठाई और पहले हरजिंदर की ग्लॉसी में डाली, इस  के बाद अपनी में। अब महफ़िल गर्म हो गई थी और सब दूरियां खत्म हो गई थीं। अब जसवीर ताश ले आया और भाबी देवर खेलने लगे और यह गेम ऐसी है जो रोते हुओं को भी हंसा देती है। जो भाबी बन जाता उस पे सभी हँसते।
ऐसे ही हँसते हुए काफी वक्त हो गया और खाने के लिए बुलावा आ गया जो पास के कमरे में ही था। डाइनिंग टेबल काफी बड़ा था और उस पर सजे तरह तरह के खाने हमारी भूख बड़ा रहे थे। हिल जुल शुरू हो गई, डौंगों में से मीट चावल और दाल सब्जिआं अपनी अपनी पलेटों में डालने लगे। जसवीर बोला,” बई अब भूख लगी हुई है, बस टूट पढ़ो “, मैंने कहा, ” जसवीर !हम लोग भी कहाँ फंस गए, गाँवों से आये सीधे साधे साग और मक्की की रोटी खाने वाले थे और अब हमारे सामने इतने खाने हैं, पता ही नहीं चलता क्या खाएं क्या ना खाये “, जसवीर बोल पड़ा, ” ओ भा जी, शुरी कांटे पकड़ो और घड़ी दो घड़ी अँगरेज़ बन जाओ, अब रानी माँ की गोद में आ गए हैं, मज़े करके देख लें “. खाना खाते खाते बातें किये जा रहे थे। हरजिंदर सिंह ने अब फिर बोतल उठाई और मेरे लिए डालने लगा तो मैंने उसी वक्त बोला,” हरजिंदर सिंह ! प्लीज़, मेरी लिमट बस इतनी ही थी “,” ओ भा जी ! बस थोड़ी सी, चलो अब खुद ही डाल लो “, मैंने बोतल हाथ में पकड़ी और थोड़ी सी ग्लॉसी में डाल ली। हरजिंदर खुश हो गया। अब सभी के पेट भर रहे थे, बातें बंद हो गई थीं, मैडीटेशन की तरह सब की एक ही चीज़ पर नज़र थी “खाना”, कुछ ही मिनटों बाद एक के बाद एक स्लो मोशन में आने लगे और आखर में फुल स्टौप लग गया और टिशू पेपर के साथ हाथ पोंछने लगे। खाना खत्म हुए कुछ मिनट ही हुए थे कि जसविंदर की बहने स्वीट डिश ले कर आने लगी। ओह नो ! ” अब कहाँ यह डालेंगे ?”  जसवीर हंस पड़ा। ” यह आप के लिए नहीं है, यह सिर्फ महमानों के लिए है “, मैं बोल पड़ा। सभी हंसने लगे। स्वीट डिश खाये कुछ मिनट ही हुए थे कि हमे अब बाहर गार्डन में जाने का संदेश मिल गया क्योंकि अब लेडीज़ ने खाना था।
हम फिर बाहर आ कर बैठ गए। सब सुस्त हो गए थे और अब डाइनिंग रूम से औरतों के हंसने की आवाज़ें आ रही थीं। कुछ देर बाद वापस जाने की तैयारियां शुरू हो गईं। अब हम भी उठ खड़े हुए। अच्छा जी सत सिरी अकाल की आवाज़ शुरू हो गईं और एक दूसरे से हाथ मिलाने शुरू हो गए, धीरे धीरे बाहर आ कर गाड़ियों में बैठने लगे। गाड़ियां स्टार्ट हुईं और हम अपने घर की ओर चल पड़े। आधे घंटे में ही हम अपने घर पहुँच गए। घर आ कर रीटा पिंकी के परिवार भी अपना सामान इकठा करने लगे। अपना अपना सामान गाड़ियों में रख लिया गया। कुलवंत ने काफी बना ली थी। दस पंन्द्रह मिनट में काफी खत्म करके सबी अपनी अपनी गाड़ियों में बैठ कर चल पड़े। रीटा ने तो बर्मिंघम ही जाना था और उस का आधे घंटे का ही रास्ता था लेकिंन पिंकी का रास्ता तीन घंटे का था और उन्होंने मोटर वे की ओर जाना था। उन के जाते ही संदीप और जसविंदर गाड़ी में बैठ कर बाहर को चल दिए और हम दोनों भी रिलैक्स होने लगे। संदीप और जसविंदर ने हनीमून के लिए डोमिनिकन रिपब्लिक की दो हफ्ते की हॉलिडे बुक कराई हुई थी। कुछ दिन बाद ही मैं और हरजिंदर सिंह अपनी गाड़ियां ले कर दोनों को जहाज़ में चढ़ाने के लिए मैनचैस्टर एअरपोर्ट पर पहुँच गए। ज़्यादा वक्त नहीं लगा जब चैक इन से निकल कर दोनों भीतर चले गए तो हम भी बाई बाई करके कार पार्क से गाड़ियां ले कर वापस चल पड़े। यूं मोटर वे से उतरे हरजिंदर सिंह बाई बाई करके अपने घर की ओर चल पड़ा और हम अपने घर की ओर। घर पहुंचे तो घर का वातावरण अब बिलकुल शांत था और हमारा मन भी, होता भी क्यों नहीं, हम अपनी ज़िम्मेदारी से फार्ग हो गए थे।
चलता . . . . .

6 thoughts on “मेरी कहानी 140

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। अपने जीवन के सुखी पलों में शरीक करने के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद ,मनमोहन भाई .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, मैडीटेशन की तरह सब की एक ही चीज़ पर नज़र थी “खाना”. बहुत बढ़िया और मज़ेदार एपीसोड के लिए आभार.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद जी .

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद जी .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, मैडीटेशन की तरह सब की एक ही चीज़ पर नज़र थी “खाना”. बहुत बढ़िया और मज़ेदार एपीसोड के लिए आभार.

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