बाल कविता

फूल भी चीखता है

फूल चीख चीख चिल्लाय
सब जब तोड़ मंदिर में चढ़ाए
फूल डाली झुक झुक जाय
मुन्नी को देख रोज मुस्काए
मुन्नी तोड़ कनेर घर लाय
दादी भरी अंजली देख हर्षाय
मम्मा मुन्नी को खूब समझाए
जितनी जरूरत हो उतना ही लाय
मुन्नी बात कहा कब मानय
मम्मा देख सब खिलौने देती छुपाय
मुन्नी चीख चीख चिल्लाय
रो रोकर पूरा घर सर पर उठाय
मम्मी तब अच्छे से समझाए
तुम्हें जैसे दुःख हुआ वैसे ही
फूल तोड़ने पर उस पौधे को हो जाय
मुन्नी को भलीभांति समझी आय
फिर कभी भूले से फूल ज्यादा नहीं लाय
सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

2 thoughts on “फूल भी चीखता है

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी सविता जी, अति सुंदर व सार्थक विचारों के लिए आभार.

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