बोधकथा

अनुपम आनंद का अनुभव

हम अपने लिए तो बहुत कुछ व्यय करके अपनी ज़रूरतें पूरी करते हैं, लेकिन उसमें हमें शायद ऐसे अनुपम आनंद का अनुभव न होता हो, जैसा, इन बच्चों को हुआ होगा. अनिता की मां हाल ही में काल-कवलित हुई थी. उसके पिता का पहले ही देहांत हो चुका था. ऐसे में देवी ने पढ़ाई छोड़ने का ही मन बना लिया था. देवी के पास पढ़ाई के लिए बिल्कुल पैसे नहीं थे. स्कूल के स्टूडेंट्स को जब यह बात पता चली, तो सबने अपनी पॉकेट मनी इकट्ठी की. कक्षा आठ के सभी स्टूडेंट्स ने मिलकर 700 रुपए जमा किए और उससे देवी के लिए किताबें और बैग खरीदकर लाए. स्टूडेंट्स ने अपने प्रिंसिपल एम श्रीनिवसुलू की उपस्थिति में देवी को किताबें और पढ़ाई की अन्य सामग्री गिफ्ट की. स्कूल के अध्यापकों ने स्टूडेंट्स के इस काम की खूब प्रशंसा की. हम भी ऐसे अनुपम आनंद का अनुभव कर सकते हैं, बस थोड़ा-सा प्रयत्न करें.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

10 thoughts on “अनुपम आनंद का अनुभव

  • राजकुमार कंडू

    श्रद्धेय बहनजी ! आज आपकी एक और प्रेरक रचना पढ़कर मन अति प्रसन्न हो गया । कभी न कभी हर इंसान के जीवन में किसी के कुछ काम आने के मौके मिलते है लेकिन जिसने भलाई करके प्रसन्नता का अनुभव कर लिया फिर वो आजीवन इसी मार्ग पर चलते हुए असीमित प्रसन्नता का अनुभव करते रहता है । एक और बढ़िया लेख के लिए आपको धन्यवाद ।

  • शिप्रा खरे

    बहुत प्रेरित कहानी लीला दी ….. छोटी सी मदद ने एक जीवन सँवारने की दिशा में हाथ बढ़ाये

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी शिप्रा जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कहानी बहुत प्रेरक लगी. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी शिप्रा जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कहानी बहुत प्रेरक लगी. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • लीला बहन , कहानी में भुत कुछ कह दिया .यह बाते बिलकुल सही है किः जो आनंद देने में आता है वोह लेने में नहीं .देने में कोई अहंकार की भावना नहीं आती, बस इंसान को एक आनंद सा अनुभव होता है जिसे बताया नहीं जाता .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. देने में अतुलित आनंद है, और बच्चों का अपनी पॉकेट मनी से देने का आनंद ही अनुपम है. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • Man Mohan Kumar Arya

    कहानी अच्छी लगी। त्याग में आनंद है और भोग में सुख होता है। उदाहरण के लिए एक कहानी है। एक सेठ जी ने फल मंडी से भिन्न भिन्न प्रकार के फल खरीदे। रिक्शे से घर आने लगे तो सामने एक बच्चा आ गया। बोला कई दिनों से भूखा हूँ। उसने हाथ आगे किया तो सेठ ने पेटी से फल निकाल कर उसे दिए। वह जल्दी ही सभी फल खा गया। घर आकर सेठ जी ने फलों की पेटी घर में रखी और अपने सभी बच्चों को बुलाकर कर उन्हें फल दिए। बच्चों ने भी फल खाएं। सेठ जी ने अपने बच्चों को ध्यान से देखा। उन्होंने कहा कि उन्हें जो आनंद मंडी में बच्चे को खिलाकर आया वह अपने बच्चों को खिलाकर नहीं आया। यह त्याग में आनंद एवं खुद भोग करने में सूख का उदाहरण प्रस्तुत करता है। सादर नमस्ते एवं धन्यवाद।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा’. बहुत सुंदर कहानी. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    प्रेरक सार्थक लेखन सखी _/_

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी अनुपमा जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

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