बाल कहानी

बाल कहानी : जादुई चश्मा

गोपू को जादुई किस्से कहानियाँ पढ़ने का बहुत शौक था. हमेशा वो परी कथा और जादूगर के बारे में पढ़ता रहता था. एक दिन वो एक बहुत ही रोचक जादूई कहानी पढ़ रहा था कि तभी कमरे में धुँआ उठा और उसमें से सोने जैसे चमचमाते कपड़े पहने हुए एक जादूगर बाहर निकला.  गोपू उसे देखकर ख़ुशी से उछल पड़ा और बोला- “मैं तो किताब में तुम्हारें बारें में ही पढ़ रहा था. ”

“हाँ, इसीलिए तो मैं तुमसे मिलने आया हूँ. मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ बोलो तुम्हें क्या चाहिए ?” जादूगर ने मुस्कुराते हुए बड़े प्यार से पूछा

गोपू को तो जैसे मनचाही मुराद मिल गई. वह ख़ुशी से बिस्तर से ही चिल्लाया -” क्या मुझे ऐसा जादुई चश्मा दे सकते हो जिसे पहनकर मैं दूसरों के मन की बात जान जाऊं ?”

“हाँ-हाँ, क्यों नहीं …कहते हुए जादूगर ने हवा में हाथ लहराया और पल भर में ही उसके हाथ में एक सुन्दर सा नीले रंग का चश्मा था. जादूगर बोला- ” इसे पहनकर तुम जिसे भी देखोगे उसके मन की बात जान जाओगे. ” और फिर वो उसी धुँए में गायब हो गया.

“हुर्रे…”कहते हुए गोपू ने लपककर वो चश्मा पहन लिया और घर से बाहर घूमने के लिए निकल पड़ा. रास्ते में उसे एक बहुत बड़ा हाथी दिखाई दिया जिसे उसका महावत लगातार अंकुश से मार रहा था ये देखकर गोपू को बहुत ही दुःख हुआ और उसने हाथी को बचने की ठानी वो जब हाथी के पास पहुंचा तो उसने देखा कि लगातार लोहे की छड़  की मार से नन्हें हाथी के सर से खून बह रहा था. गौर से देखने पर उसने पाया कि उसकी आँखों से आँसूं भी बह रहे थे. उसने तुरंत अपना चश्मा उठाया और महावत के मन की बात जाने के लिए पहन लिया.

महावत सोच रहा था – “यह नन्हा सा हाथी मेरी मार कब तक सहन कर पायेगा, या तो ये मर जाएगा या फिर पागल हो जाएगा. फिर मैं तस्करों को इसके दाँत बेचूंगा और ढेर सारे पैसे कमाऊंगा. ”

” ओह, तो ये बात हैं ..” पर मैं तुम्हें अपने मकसद में बिलकुल भी कामयाब नहीं होने दूँगा.” गोपू धीमे से बोला. गोपू ने महावत को इशारे से अपने पास बुलाया और बोला-” मेरे पास आओ, मुझे तुमसे बहुत जरुरी बात करनी हैं. ”

महावत जो कि स्वभाव से ही रूखा और चिड़चिड़ा था , हाथी के ऊपर से ही चिल्लाकर बोला-” मुझे नहीं सुननी हैं , तुम्हारी कोई बात वात. ”

गोपू लापरवाही  से कंधे उचकाता हुआ बोला-” ठीक हैं, मैंने तो सोचा था कि मेरे पास कुछ हाथियों के दाँत पड़े हैं, तुम्हें उनके बारें में बताऊँ. ”

हाथी दाँत के बारे में सुनते ही महावत की आँखों में चमक आ गई और झट से हाथी के नीचे उतर गया. नन्हा हाथी जिसका नाम बम्पी था, बड़े गौर से उन दोनों की बातें सुन रहा था. महावत ने ख़ुशी के मारे गोपू का हाथ पकड़ लिया और उसकी खुशामद करते हुए बड़े ही मीठे स्वर में बोला-” कहाँ हैं हाथी के दाँत? तुम्हारे पास कैसे आये? कितने दाँत हैं और कहाँ रखे हैं ?

गोपू महावत की अधीरता देखकर मन ही मन मुस्कुराते हुए बोला-” ओहो, तुम इतने सारे प्रश्न एक साथ पूछोगे तो क्या मैँ भूल नहीं जाऊँगा ?”

हे हे हे …करते हुए महावत जोर से हंसा और बोला-” अच्छा अब जल्दी से बताओ, हाथी दाँत कहाँ रखे हैं ?”

मेरे पिता जी एक शिकारी है और उन्होंने बहुत सारे जानवरों का शिकार किया हैं इसलिए बहुत सारे शेर चीतों की खालों के साथ साथ हाथी दाँत भी है ई ”

“क्या तुम मुझे वो दोगे ? ” महावत ने बड़े ही प्यार से पूछा.

“हाँ हाँ, क्यों नहीं , मेरे यहाँ तो पूरा कमरा भर के ये सब चीजे ऐसे ही पड़ी हुई हैं.”

“तो तुम्हारे मम्मी पापा तुम्हें डांटेंगे नहीं?” महावत ने कुछ घबराते हुए कहा

“वो दोनों इस समय घर पर नहीं है” गोपू हँसते हुए बोला, “पर तुम्हें भी मेरी एक शर्त माननी पड़ेगी.”

“क्या, जल्दी बोलो…” महावत उत्सुकता से बोला.

“इस हाथी को तुम्हें मुझे देना पड़ेगा …” गोपू प्यार से हाथी को देखते हुए बोला.

“हाँ, हाँ, ले लो..आज से ..ना ना इसी समय से यह हाथी तुम्हारा हुआ …” महावत खींसे निपोरता हुआ बोला.

“तो चलो, मैँ अभी तुम्हें वो हाथी दाँत दे देता हूँ.” गोपू महावत को अपने पीछे आने का इशारा करता  हुआ बोला

गोपू ने अपने घर से थोड़ी दूरी पर ही महावत को खड़े रहने के लिए कहा और खुद एक गली की ओर चला गया. महावत खड़े-खड़े डर रहा था. उसे लग रहा था कि कहीं यह लड़का हाथी दाँत लेकर नहीं आया तो उसका हाथी भी उसके हाथ से चला जाएगा और कही वो किसी से उसकी शिकायत न कर दे  .यही सब सोचते हुए महावत के माथे पर पसीना की बूंदे चमक उठी. तभी उसे गली के मोड़ से गोपू आता हुआ दिखाई पड़ा.

वह लगभग दौड़ता हुआ गोपू के पास पहुँचा और लालच भरी निगाहों से बोरे की ओर देखने लगा. गोपू ने बोरे को हल्का सा खोलकर दिखा दिया. बोरो के अंदर से झांकते हाथी दाँतों को देखकर वह ख़ुशी के मारे चीखा -” अरे वाह, अब तो मैँ करोड़पति बन जाऊँगा…”

“धीरे बोलो, कहीं कोई सुन ना ले” गोपू फुसफुसाया

“हाँ, सही कह रहे हो तुम, अब जल्दी से जाओ …”

“धन्यवाद दोस्त, मैं तुम्हें हमेशा याद रखूँगा” महावत मुस्कुराते हुए बोला

“भूलना चाहोगे तब भी नहीं भूल पाओगे …” कहते हुए गोपू हँसा “आखिर मैंने तुम्हें इतने सारे हाथी दाँत जो दिए हैं”

महावत ने हँसते हुए गोपू को देखा और फटाफट वहाँ से तेज क़दमों से चल दिया. जब महावत आँखों से ओझल हो गया गोपू चिल्लाया -” अरे , सारे दाँत तो प्लास्टर ऑफ़ पैरिस के हैं ” और यह कहकर वो जोरो से हँसने लगा

तभी मम्मी ने उसे बिस्तर से उठाते हुए कहा- “अब सपना ही देखते रहोगे या स्कूल भी जाना हैं?”

गोपू आँख मलते हुए उठा और बोला-” तो क्या मैं सपना देख रहा था ”

“हाँ …”मम्मी हँसते हुए बोली

“तो चलो मैं आपको अपना मजेदार सपना सुनाता हूँ. “…कहते हुए गोपू माँ के गले लग गया.

डॉ मंजरी शुक्ला