कविता

कुछ रचनाएँ

जीवन-एलबम
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जीवन की आपाधापी में,
खो जाते है पल ऐसे ही,
दामन को छू जाती है बस,
यादों के धुधलके से आती जो,
तस्वीर निकलती कब एलबम से,
“मौन” सोंचते हो जब तुम|

इतराते बादल
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पिल जाते है काले बादल,
जब वह अपने पे आते हैं|
नर संहार मचा देते वह,
घर बार बहा ले जाते हैं|
राहत तपन से दिला जाते,
जब बरस बरस इतराते हैं|
“मौन” इतराता बादल पर,
जब गर्जन से अपनी डराते हैं|
मस्त हवा की मादकता ले,
जब बादल जग में लहराते हैं|

पर्यावरण की धारा
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जीवन कठिन, कठिन है छाया,
दूषित पल पल होती है माया|
हरी भरी न धरा की है काया,
पेड़ों बिना न होती है छाया|
कल कल छल छल न हैं, नदियाँ,
गन्दे नालों से पटी हुई हैं,नदियाँ|
जल पी सकूं जो, चुल्लू में आए,
निर्मल रहे हर जगह, जल धारा |
“मौन” सदा, विकास धार ही सोचूं,
दूषित हो न, पर्यावरण की धारा |

—मनोज “मौन”