कविता

न देती किसी को पीड़ा

सर्दियों की ठिठुरती सुबह
ठिठुरती सुबह की सुनहरी धूप
आसमान पर छितराए बादलों का
अनोखा था घनश्याम जैसा श्यामल रूप
सर्दी और बादल पंछियों की क्रीड़ा को
तनिक भी बाधित नहीं कर पाए
पंछियों बड़े-से झुंड में
आनंद-ही-आनंद था
न मज़हब की दीवारें
न सरहद की दरारें
न विवादों का दौर
न विकल करने वाले समाचारों पर गौर
उनकी क्रीड़ा को व्यायाम कहें या योग!
उन्हें चिंता नहीं क्या कहेंगे लोग?
एक लीडर के पीछे तीर की तरह मुड़ते हुए पंछी
छब्बीस जनवरी की परेड के आखिर में
मिग विमानों की तरह ग्राफिक्स बनाते हुए पंछी
न मोबाइल की घंटी की घर्र-घर्र
न खिचड़ी पकाने की चिंता का चक्कर
मुक्ति पूर्वक उड़ते हुए भी मुक्ति के अहंकार से परे
प्यार पूर्वक रहते हुए भी मोहमाया रहित सच्चे और खरे
कलरव करते हुए प्यारे-प्यारे पंछियों की यह क्रीड़ा
मुक्ति-ही-मुक्ति का राग अलापती
न देती किसी को पीड़ा,
न देती किसी को पीड़ा,
न देती किसी को पीड़ा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “न देती किसी को पीड़ा

  • ना देती किसी को पीड़ा, कविता बहुत अछि लगी . काश पक्षिओं की तरह इंसान की जिंदगी भी चिंता मुक्त हो जाए !

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, अत्यंत भावभीनी प्रतिक्रिया के लिए आभार.

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