कविता

मौसम का तराना

आज की मेरी कविता
मौसम का तराना

क्या कहूँ कैसा जादू है इस कदर।
मौसम आज दिल को लुभाने लगा॥

सूर्यदेव की मिजाज देखिए जनाब।
अंधेरा सारा कहीं दूर सरकने लगा॥

चिडियाँ कहीं डाली पर बैठकर गाती।
वह सुरताल मन मोहित करने लगा॥

कलियाँ फूल बनकर खिलने लगी।
आलम सारा बनठन के झुमने लगा॥

दिल में सुकुन सा महसूस करता हूँ।
ये तराना नस में लहू बन समाने लगा॥

कुदरत का खेल देख आँखे भर आती।
देख लीला उसके सामने सिर झुकने लगा॥

–डॉ. सुनील परीट बेलगांव कर्नाटक

डॉ. सुनील कुमार परीट

नाम :- डॉ. सुनील कुमार परीट विद्यासागर जन्मकाल :- ०१-०१-१९७९ जन्मस्थान :- कर्नाटक के बेलगाम जिले के चन्दूर गाँव में। माता :- श्रीमती शकुंतला पिता :- स्व. सोल्जर लक्ष्मण परीट मातृभाषा :- कन्नड शिक्षा :- एम.ए., एम.फिल., बी.एड., पी.एच.डी. हिन्दी में। सेवा :- हिन्दी अध्यापक के रुप में कार्यरत। अनुभव :- दस साल से वरिष्ठ हिन्दी अध्यपक के रुप में अध्यापन का अनुभव लेखन विधा :- कविता, लेख, गजल, लघुकथा, गीत और समीक्षा अनुवाद :- हिन्दी-कन्नड-मराठी में परस्पर अनुवाद अनुवाद कार्य :- डाँ.ए, कीर्तिवर्धन, डाँ. हरिसिह पाल, डाँ. सुषमा सिंह, डाँ. उपाध्याय डाँ. भरत प्रसाद, की कविताओं को कन्नड में अनुवाद। अनुवाद :- १. परिचय पत्र (डा. कीर्तिवर्धन) की कविता संग्रह का कन्नड में अनुवाद। शोध कार्य :- १.अमरकान्त जी के उपन्यासों का मूल्यांकन (M.Phil.) २. अन्तिम दशक की हिन्दी कविता में नैतिक मूल्य (Ph.D.) इंटरनेट पर :- www.swargvibha.in पत्रिका प्रतिनिधि :-१. वाइस आफ हेल्थ, नई दिल्ली २. शिक्षा व धर्म-संस्कृति, नरवाना, हरियाणा ३. यूनाइटेड महाराष्ट्र, मुंबई ४. हलंन्त, देहरागून, उ.प्र. ५. हरित वसुंधरा, पटना, म.प्र.