सामाजिक

जानिए क्यों होता है हिन्दुओ का धर्मपरिवर्तन

कोई भी धर्म भ्रम या जोर जबरजस्ती से बड़े पैमाने पर न तो ज्यादा लंबे समय तक टिका रह सकता है और न ही व्यापक रूप से फैल सकता है। किसी भी धर्म की सफलता के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है की वह लोगो की सामाजिक और मनिवैज्ञानिक अवश्यक्ताओ को पूरा करता हो।क्या हम भारत में इस्लाम के प्रवेश और विस्तार के बारे में ऐसा कह सकते हैं ?

बौद्ध धर्म में कई फाड़ होने और उनके प्रति जो कठोरता और निर्दयता का बर्ताव वैदिकों द्वारा हुआ उससे बौद्ध धर्म के पैर भारत से उखड गए ।नतीजा यह हुआ की वैदिक धर्म में शुद्रो और अछूतो की संख्या में जबरजस्त वृद्धि हुई ,कारण यह था की बचे हुए बौद्धों को इन्ही दो वर्गों में सर्वाधिक समल्लित किया गया था । तीनो उच्च जातियां वर्ण व्यवस्था के कारण उच्च पद पर थे और शुद्र और अछूत निम्न से निम्नतर ।

शुद्र और दलितों को सिर्फ राजनैतिक भागीदारी से ही वंचित नही किया गया था बल्कि बाकी तीनो वर्णों से सामाजिक जीवन में निकट भागीदारी से भी वंचित कर दिया गया ।

पानी के स्रोत, निवास स्थान , सामजिक स्थिति तो अलग थी ही ,कई मामलो में सामजिक मेलजोल इतनी कठोर थी की कई मामलो में अछूत कहे जाने वालो की छाया भी शीर्ष वर्ण अपवित्र कर देती ।यदि अछूत कही जाने वाली जातियां सार्वजनिक रास्तो का इस्तेमाल कर रहा है तो उसे गले में हांड़ी बाँध के और पीछे झाड़ू बाँध के चलना पड़ता था , उसे दूर से ऊँची ध्वनि में चीखना पड़ता था अपनी उपस्थिति की सूचना देने के लिए ताकि कंही भूलवश शीर्ष वर्ण का व्यक्ति शुद्र दलित से किसी पर का संपर्क न कर ले ।

इसके अतरिक्त यह बात सोलह आने सत्य है की हिन्दू धर्म वास्तव में अलग अलग जातियों का समूह मात्र था , जिसमे सामूहिक एकता जैसी भावना सर्वदा अनुउपस्थित थी । बेशक प्रत्यक्ष् रूप से एक ही धर्म के लगते थे पर सामूहिक चेतना के आभाव में उनमे गठबंधन था ।
ये सामूहिक एकताहीन गठबंधन ऊपर से एक ही दिखता था पर आंतरिक रूप से अलग अलग जंहा एकता नाम का कोई तत्व नहीं था ।

सेना जिस पर जन्म आधारित उच्च वर्ण का अधिकार था उसके सैनिक किस से हार रहे हैं या जीत रहे हैं उन से एक बड़े वर्ग जिसे शुद्र और अछूत कहा जाता था उससे कोई सम्बन्ध न था । क्यों की उनके लिए मालिक कोई भी हो उनकी नियति समाज में निम्नस्तरीय ही बनी रहती।

नतीजा यह हुआ की उच्च वर्ण द्वारा तिरस्कृत , निन्दित और बहिष्कृत जातियो के लोगो का परिचय जब इस्लाम से हुआ तो उन्हें वह मानसिक और सामजिक सुरक्षा प्रदान करने वाला लगा जिसे वे हिन्दू धर्म में युगों से रह के भी नहीं महसूस कर पा रहे थे ।
अतः बंगाल जैसे राज्य में जंहा तिरस्कृत और बहिष्कृत जातियो की संख्या सबसे अधिक थी उन्होंने इस्लाम लुभा गया।

उदहारण के तौर पर बंगाल में बुनकरों और जुलाहों की संख्या सबसे अधिक है वे हिन्दू उच्च वर्णीय लोगो के लिए अधम और हीनतम श्रेणी में थे , वे अपनी स्थिति से मुक्ति के लिए अधीर थे । इसलिए जब इस्लाम से परिचय हुआ तो उन्होंने खुल के उसका स्वागत किया।

साफ़ शब्दों में कहें तो इस्लाम उन सभी बहिष्कृत और तिरस्कृत जातियो के लिए सामजिक बंधुत्व और एकता का वादा कर रहा था जो अपने ही हिन्दू भाई बंधुओं के लिए बाहरी थे। स्वयं उच्च वर्ण के लोगो को एक मुसलमान से कोई भेदभाव न था , वे उनके साथ सामजिक सबंध रख सकता था जो की एक शुद्र या अछूत के लिए लगभग असम्भव रहता ।

भारत में जो धर्म परिवर्तन हुए उनका मुख्य कारण यही रहा है ,हिन्दू धर्म की जातीय निर्दयताओ के कारण इसका एक बहुत बड़ा वर्ग कटता रहा है और आज भी कट रहा है ।

एक सबसे अच्छा उदहारण आप स्पेन का देख सकते हैं , स्पेन कभी इस्लामिक देश हो चुका था , सैकड़ो सालो तक तक वंहा राजकीय और बहुसंख्यक मजहब बना रहा । पर वंहा के निवासियो को अपने पुराने धर्म से बहुत प्यार था और वे इस्लाम को थोपा हुआ मजहब मानते थे ।
अतः वे हिर्दय से कभी इस्लाम को स्वीकार नहीं कर पाये थे और जब उन्हें मौका मिला थोपे गए मजहब के जुए को उतार फेंका क्यों की वंहा के निवासियो में बंधुत्व की भावना जस की तस रही , वंहा जातीय या वर्ण के आधार पर बंटे हुए नहीं थे ।

पर भारत में ऐसा नहीं हो पाय…क्यों? क्यों की हिन्दू धर्म के ठेकेदार यह कहते है की ईश्वर ने स्वयं विभाजित किया है ,पुष्टि के लिए ग्रन्थ है ।

एक कहावत है न –
जाको राखे साईंया
मार सके न कोय

ऐसी कहावत हिन्दू धर्म के बारे में फिट बैठती हैं की –
की जाको बांटे साइयां
मेल करा सके न कोय

तो, मेरा सुझाव हिन्दू धर्म के ठेकेदारो को की पहले वे लोग उस ईश्वरीय आदेश का पालन बंद करें जिसमे समाज को वर्णों में बाँट दिया गया ।

हिन्दू धर्म के उच्च वर्ण द्वारा उस वंचित समुदाय से माफ़ी माँगने के साथ साथ नैतिक ईमानदारी के साथ उनको समाज में उंनकी वह हिस्सेदारी और सम्मान जो आपके पूर्वजो ने उनसे छीना है और आप लोग अब भी छीन रहे हैं , वह नहीं लौटा देते हैं तब तक जाकिर नायक जैसा बन्दा भी धर्म परिवर्तन करवाता रहेगा और आप केवल ‘ऑडर … ऑडर … चिल्लाते रहेंगे ।
सोचिये मेरी बात को , दुसरो मजहब के लोगो को दोष देने से अच्छा एक बार ईमानदारी से आत्मनिरक्षण कीजिये ।

– केशव( संजय)

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?