हाइकु/सेदोका

चन्द हाइकु कविताएं:-


1)

झट आ बैठी

खोलते ही झरोखा

हठीली धूप।

2)

नाचती बूंदें

छई छपाक छई

दादुर कूदें ।

3)

पंकिल पात

घिर मेघ बरसे

विहँसे गाछ

4)

बरखा बूंद

खेतों में रच गयी

कविता छंद

5)

मेघा निराले

झट से भर गए

रीते भू प्याले

6)

गाल बजाते

अख़बार के पन्ने

धुंआ उड़ाते।

7)

सवाल आम

दरख्तों में उलझी

पीड़ा तमाम

8)

बरसी वृष्टि

नन्हा बीज समेटे

सम्पूर्ण सृष्टि ।

9)

अँजुलि छाले

कर्म से रुठा भाग्य

रोटी के लाले ।

10)

तोड़ के कारा

साँझ घनेरी रात

आ गया तारा

11)

चेताते कवि

आकाश है धुंधला

छुपा है रवि

12)

प्यासे परिंदे

बूँद-बूँद तरसे

पोखर गंदे

13)

लीप लो चूल्हा

उगा है नभ डाल

सूरज फ़ूला।

14)

हो गयी शाम

झुरमुट से झाँके

अधूरा चाँद

15)

दे गए झाँसा

श्याम वर्ण बदरा

भू तरु प्यासा

16)

बुझ ही गया

ओसारे में जलता

बूढ़ा सा दीया

17)

ढूंढती पता

मायके की चिड़िया

फोटो में पिता

18)

गयीं निगल

डामर की सड़कें

पगडंडियाँ।

19)

भाव पुलिंदा

अद्भुत सा रहस्य

शब्द घरौंदा।

20)

खोल के भागी

खिड़की दरवाज़े

वक़्त की आंधी

21)

विधि का लेखा

मन से आत्मा तक

बन्द झरोखा।

22)

फुदके प्यासी

जेठ दुपहरिया

मुंडेर चिड़ी

23)

धन की जंग

लड़े बाप से भैया

रिश्ते बेरंग

24)

कंटक पथ

रुके न एक पल

जीवन रथ।

25)

मै और चाँद

सारी रात करते

खुद से बात

26)

बदला वक़्त

फूल,पत्तों से लदा

सूखा दरख़्त।

27)

दिवस मास

दीया बाती के साथ

पलती आस।

28)

जलते पात

सूर्य की देह पर

चढ़ता ताप

29)

मरे जो भाव

सुरम्य अनुबन्ध

लगते घाव।

30)

बात दिन की

बूझ रात थकी है

प्रातः से हारी।

31)

हुई जो भूल

मौकापरस्त लोग

चुभाते शूल।

32)

भीगा दड़बा

व्यथित मन पाखी

तुषार हवा ।

33)

देहरी द्वार

वाट जोहता दीया

जलते भाव ।

34)

द्रवित मन

डबडबाए दृग

तिरते स्वप्न ।

35)

अंग-तरंग

मधुरतम ऋतु

भीगी उमंग ।

36)

धुले है पात

झूम उठी है शाखें

दरख़्त ह्वास ।

37)

भीगा घोंसला

ठिठुर रहे चूजे

जूझे चिरैया ।

38)

थकी चाँदनी

उलीच रात भर

फैले सन्नाटे

39)

लगी जो गाँठ

दरकते सम्बन्ध

बिन आवाज़ ।

40)

दृश्य अदृश्य

रुनझुन बुँदिया

मन सावन ।

41)

घटा विरही

मन -आँगन बैठी

निर्मोही तुम ।

42)

द्रवित मन

डबडबाए दृग

तिरते स्वप्न ।

43)

चिह्न उकेरो

चुन चुन भावों को

शब्दों के संग ।

44)

अंधेरी रात

टिमटिमाते तारे

थके उजास ।

45)

सोया अलाव

ढूंढे बूढ़ी हड्डियाँ

कम्बल ठाँव

46)

समय जात

पिस पिस निखरे

बुरे हालात ।

47)

आँखें न मींचें

यही प्यारी औलादें

दीवारें खीचें ।

 

गुंजन अग्रवाल

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*