कविता

कविता : शील भंग

वाह   रे     शैतान    तूने   ऐसा    खेल    खेला,
भारत   में  ब्यभिचारियो  का लगा दिया  मेला।

दिखने में अल्हड फूल सा अवयस्क सा भोला
करतूते   इतनी  काली  भीतर   से   था  शोला।

न   देखी  बहिन  बेटी  औरत  समझ के खेला
उडा दो   बीच   बाजार   इनके  सर  का भेला।

बैठाओ  इनको  गधे पर सिर मुंडन मुह काला
फांसी दो उन सभी को चाह हो PM का साला

न   देखी  शर्म   न   देखी  उम्र   न  देखा  धर्म
हैवानियत जब सवार हुई  कर डाला बुरा कर्म।

इस  घृडित  कृत्य  से  न  मन  नेक  भी डोला
दे   दिया   हर  पीड़िता  को  दर्द   का   गोला।

इन  दरिंदो   से  तो  आतंकवादी  अच्छे  होते
दूसरो  को न  सही अपने  वतन  को तो  रोते

इनको सजा दो कुछ ऐसी जिंदगी मौत बन जाये
फिर न छेड़े बहिन बेटी को इक नजीर बन जाये।

 कवि दीपक गांधी

दीपक गाँधी

नाम - दीपक गांधी पिता का नाम - टी आर गांधी पद - विकास खण्ड अकादमिक समन्वयक (उच्च श्रेणी शिक्षक) निवास - ग्वालियर म. प्र. रूचि - साहित्य , लेखन ( कविता, गजल) साहित्यिक सफर - 120 कविता, 80 गजल लिख चुका हूँ