कविता

वो इंसान हो सकता है

अँधेरे में जो साथ छोड़ दे ,
वो साया होता है ,
ख्वाब नहीं ।
कच्चे धागे सा जो टूट जाए ,
वो रिश्ता होता है ,
रिवाज नहीं ।
पल पल में ढल जाए वो
समय हो सकता है
अतीत नहीं ।
किसी गम से गुम हो जाए
वो हंसी होती है
मुस्कान नहीं ।
जो सबसे छिपा रह सके
वो खुदा हो सकता है
आंसू नहीं ।
जो जीना भूल जाता है
वो इंसान हो सकता है
जानवर नहीं ।

सचिन परदेशी ‘सचसाज’

सचिन परदेशी

संगीत शिक्षक के रूप में कार्यरत. संगीत रचनाओं के साथ में कविताएं एवं गीत लिखता हूं. बच्चों की छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे बाहर लाने में माहिर हूं.बच्चों की मासूमियत से जुड़ा हूं इसीलिए ... समाज के लोगों की विचारधारा की पार्श्वभूमि को जानकार उससे हमारे आनेवाली पीढ़ी के लिए वे क्या परोसने जा रहे हैं यही जानने की कोशिश में हूं.