लघुकथा

देवदूत-लघुकथा

ऑपरेशन थियेटर में कल्याणी देवी की बहु गंभीर अवस्था में जा चुकी थी| डेलिवरी के लिए सबकुछ सामान्य था कि अचानक बच्चे की पोजीशन गड़बड़ हो गई| शिशु का हृदय स्पंदन मंद पड़ने लगा और माँ की स्थिति भी बिगड़ने लगी| थियेटर में जाते वक्त लेडी डॉक्टर क्षण भर के लिए कल्याणी देवी के सामने रुकी फिर अन्दर चली गई|
करीब एक घंटे बाद डॉक्टर अपने हाथों में नवजात को लेकर आई|
”आंटी, मैं आयुषी”, शिशु को दादी के हाथों में देकर उसने कल्याणी देवी के पैर छूते हुए कहा|
”आयुषी बेटा,”भावातिरेक में कल्याणी देवी कुछ कह नहीं पाई| पच्चीस साल पहले की वह घटना उनकी आँखों के सामने चलचित्र की भाँति घूम गई|

इस शहर से उस शहर का फासला ट्रेन से चार घंटे का था| मेडिकल की प्रवेश परीक्षा देने के लिए परीक्षार्थियों की भीड़ उमड़ पड़ी थी| एक छोटी कमसिन सुन्दर लड़की अपने वृद्ध पिता के साथ कल्याणी देवी के कम्पार्टमेंट में आकर बैठी| कुछ देर बाद ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी| पीने का पानी घर में ही छूट गया था और लड़की को प्यास लगी थी| वहाँ ट्रेन को कुछ देर रुकना था सो वह वृद्ध पानी लाने स्टेशन पर उतरे| पानी का नल उस डिब्बे से थोड़ी दूरी पर था| पानी लेकर लौटते तबतक इंजन ने सीटी दे दिया और ट्रेन धीरे धीरे सरकने लगी| लड़की हड़बड़ाई सी गेट पर गई| अभी उसके पिता कुछ दूरी पर ही थे कि ट्रेन ने पूरी रफ़्तार पकड़ ली| लड़की वापस अपनी सीट पर आकर बैठी और रोने लगी| मनचलों की फब्तियों का दौर शुरु हो गया|
”बेटी, कहाँ जाना है,”कल्याणी देवी ने पूछा|
”मैं मेडिकल की परीक्षा देने जा रही हूँ| उस शहर तक पिता जी अगली ट्रेन पकड़कर आ जाएँगे| लेकिन आंटी, मेरी परीक्षा छूट जाएगी| मैं वहाँ किसी को नहीं जानती| परीक्षा केंद्र भी कहाँ है , नहीं जानती| ” सुबकते हुए लड़की ने बताया|
”अजी हम जानते हैं परीक्षा केंद्र, हमारे साथ चलना, पहुँचा देंगे,” मनचलों के ठहाकों के बीच से यह आवाज आई|
लड़की थरथर काँपने लगी|
कल्याणी देवी ने एडमिट कार्ड देखा| लड़की का नाम आयुषी था|
” बेटी, हम उसी शहर के हैं| तुम्हें ले चलेंगे,” मनचलों की भीड़ को घूरते हुए कल्याणी देवी ने कहा|
ट्रेन रुकी| कल्याणी देवी सीधे केंद्र पर पहुँचीं| आयुषी को अन्दर भेज उन्होंने राहत की साँस ली| तीन घंटे की परीक्षा थी|
”निकलकर कहाँ जाएगी आयुषी,” यह सोचकर केंद्र पर ही बैठ गईं| दो घंटे बाद अचानक किसी ने पूछा,”आपने देखा है मेरी आयुषी को”
मुड़कर कल्याणी देवी ने देखा| वही वृद्ध आँखों में आँसू लिए खड़े थै|
” जी, वह परीक्षा देने अन्दर गई है” कल्याणी देवी ने मुस्कुराते हुए कहा|
वृद्ध के दोनों हाथ आसमान की ओर उठ गए और उनकी आँखों से आँसुओं की अविरल धार बही जा रही थी|
–ऋता शेखर ‘मधु’

2 thoughts on “देवदूत-लघुकथा

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी ऋता जी, अति सुंदर लघुकथा के लिए आभार.

    • ऋता शेखर 'मधु'

      उत्साह बढ़ाने हेतु दिल से आभार सखी लीला जी !

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