यात्रा वृत्तान्त

चलो कहीं सैर हो जाये-3

कथा सार :
हम कुछ मित्र मुंबई से ट्रेन द्वारा जम्मू और फिर बस द्वारा कटरा पहुंचे । बाणगंगा में नहा कर आगे बढे । अब आगे………….

शाम का धुंधलका घिरने लगा था । रास्ते के दोनों किनारे करीने से सजी दुकानें रोशनी से नहा उठी थीं ।  हम लोग एक किनारे से धीरे धीरे चलते हुए भवन की ओर अग्रसर थे ।
भीडभाड तो थी ही बीच बीच में घोड़ों की आवाजाही से भीड़ में अफरातफरी मच जाती । यात्रियों के शोरगुल के बीच में उत्साही यात्रियों  द्वारा लगाया गया माता का जयकारा भी कभी कभी गूंज उठता । हम थोड़ी ही दूर लगभग एक किलोमीटर ही चले होंगे की हमें माताजी का चरण पादुका मंदिर दिखाई पड़ा ।

मंदिर के बाहर ही मातारानी के प्रथम दर्शन का सूचना पट लिखा हुआ था ।यहाँ दर्शन के लिए कोई भीड़ नहीं थी । हम लोग कुछ ही मिनटों में मातारानी के चरण चिन्हों के और बगल में ही स्थित हनुमान जी के दर्शन कर मंदिर से बाहर निकले और आगे बढे ।

रास्ते के दोनों तरफ अन्य  दुकानों के साथ ही नाश्ते और भोजन के लिए होटलों की भरमार थी । रात के लगभग नौ बज रहे थे ।यूँ तो हम सभी दस बजे के बाद ही भोजन करने के अभ्यस्त थे लेकिन आज समय से पहले ही पेट में चूहे उछलकूद मचाने लगे थे । एक ठीकठाक होटल देखकर हम लोग भोजन के लिए रुके । आगे निरंतर यात्रा जारी रखने की योजना के तहत हम सभी ने हल्का भोजन ग्रहण किया और आगे बढे ।

आगे दुकानें कुछ कम हो गयी थी । लेकिन यत्रियों की भीड़ यथावत थी । रास्ते में जगह जगह पीने के लिए शीतल जल और निशुल्क प्रसाधन की सुविधा उपलब्ध है । सफाई के लिए कर्मचारी हमेशा प्रयासरत रहते हैं ।कहीं कहीं घोड़ों के लिए अलग लेन की व्यवस्था पैदल यात्रियों के लिए राहत लेकर आती ।

बीमार और वृद्धों को डोली में बैठकर यात्रा करते देख मन में डोली उठानेवालों के लिए करुणा  और यात्रियों की मातारानी के प्रति भक्ति देखकर उनके लिए आदर का भाव जागृत हो उठता ।

वहीँ कुछ अच्छे भले लोगों  को भी डोली में बैठे देख उन पर गुस्सा आना भी स्वाभाविक ही था । यह रईसी का भोंड़ा  प्रदर्शन ही तो था ।  अब कोई इसके समर्थन में यह तर्क रख सकता है की इसीसे स्थानीय लोगों को रोजगार मीलता है । ठीक है लेकिन क्या रोजगार का सृजन करते हुए हमें मानवीयता को भूल जाना चाहिए ?  तो फिर कलकत्ता में हाथों से खींचनेवाले रिक्शों को क्यों बंद कराया गया ?  हजारों गरीब इसी रोजगार  में लगे थे ।    इसी तरह सब कुछ देखते समझते और आपस में बातचीत करते हम लोग चलते रहे ।

कहीं कहीं खड़ी चढ़ाई अब दुरूह लगने लगी थी । थकान हावी न हो जाये इसलिए हम लोग थोड़ी थोड़ी दुरी के अंतराल पर थोड़ी देर विश्राम कर लेते ।

रात के ग्यारह बजने वाले थे । अब हम लोग एक दोराहे पर पहुँच गए थे । बायीं तरफ का रास्ता हिमकोटी होकर तो दायीं तरफ का रास्ता सांझीछत होकर भवन तक जायेगा ऐसा सूचनापट पर दर्शाया गया था । बायीं तरफ से जाने पर  अर्धक्वारी जाने से वंचित रह जाते सो हम लोगों ने दायीं तरफ मुड़ कर अर्धक्वारी जाना ही श्रेयस्कर समझा ।

बिलकुल सामने ही दिखनेवाले अर्धक्वारी धाम तक पहुँचने में भी हमें बीस मिनट और लग गए । धाम से पहले ही सुरक्षा जांच की औपचारिकताएं पूरी कर हम आगे बढे ।

आगे दायीं तरफ कुछ निजी होटल थे । बायीं तरफ यात्रियों की सुविधा के लिए मंदिर प्रशासन द्वारा संचालित सस्ते दर पर भोजन उपलब्ध कराने वाले भोजनालय थे । ऐसे भोजनालयों की एक पूरी श्रंखला हमें जगह जगह दिखाई पड़ी ।
यहाँ मुफ्त औषधालय भी दृष्टिगोचर हुआ जहां यात्रियों के लिए मुफ्त दवाई और इलाज का दावा किया गया था ।

दावे की जांच के लिए हमारे एक साथी ने दवाखाने में प्रवेश कर सिरदर्द की शिकायत की । वहाँ मौजूद डॉक्टर ने तुरंत उठकर मित्र की नब्ज देखी । फिर रक्तचाप जांचने पर वह सामान्य से थोडा बढ़ा हुआ मिला ।

डॉक्टर ने बड़ी आत्मीयता से धीरज बंधाते हुए कुछ गोलियां दी और और साथ ही कुछ देर विश्राम  करने के बाद यात्रा जारी रखने की सलाह भी दी । पैसे के बारे में पूछने पर डॉक्टर ने विनम्रता से  इन्कार करते हुए जय माता दी कहकर अपना नाम और पता पास ही पड़े रजीस्टर में दर्ज करने के लिए कहा ।

अपना नाम पता रजिस्टर में दर्ज करने के बाद डॉक्टर को धन्यवाद और जय माता दी कहकर हम लोग आगे बढे ।

मंदिर प्रशासन  द्वारा यात्रियों को निशुल्क दवाई सस्ते दरों पर भोजन और मुफ्त आवास पेयजल और प्रसाधन का समुचित इंतजाम काबिले तारीफ लगा ।

अर्धक्वारी मशहूर है एक गुफा के लिए जिसे गर्भजून कहा जाता है । मान्यता है की भैरव द्वारा

पीछा किये जाने के बाद माताजी एक छोटी सी कन्या का रूप धर कर  नौ महीने तक इस गुफा में ध्यानमग्न रहीं । हनुमानजी को माताजी ने गुफा के प्रवेशद्वार पर ही तैनात कर दिया था । इसी मान्यता के चलते यहाँ आनेवाला हर श्रद्धालु किसी भी कीमत पर गर्भजून के दर्शन करना चाहता है ।

इस बाबत पूछताछ करने पर हमें वहाँ  बने एक खिड़की से दर्शन के लिए नंबर प्राप्त करने के लिए कहा गया और साथ ही बताया गया की अभी नंबर लगानेवालों की बारी कमसे कम 24 घंटे बाद ही आएगी । अपना ग्रुप नंबर प्राप्त करने के बाद हम लोग वहीँ कुछ देर विश्राम के लिए रुके ।

कुछ लोगों द्वारा पता चला की हिम कोटि के रस्ते से भवन जाने वाला मार्ग अपेक्षाकृत बड़ा नजदीक और आसान है । हम लोग हिमकोटि के रस्ते भवन की ओर जानेवाले मार्ग पर आगे बढे ।
क्रमशः …………..

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

4 thoughts on “चलो कहीं सैर हो जाये-3

  • लीला तिवानी

    प्रिय राजकुमार भाई जी, जय माता दी, माताराणी के दर्शनों के लिए ले जाने वालों की भी जय हो. अति सुंदर यात्रा का अति रोचक वर्णन आनंददाई लगा. अति सुंदर व सार्थक रचना के लिए आभार.

    • राजकुमार कांदु

      श्रद्धेय बहनजी ! रचना आपको सुन्दर लगी पढ़कर ख़ुशी हुयी । उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    भाई साहब ,हम भी साथ साथ जा रहे हैं और इस यात्रा का आनंद ले रहे हैं . हट्टे कट्टे लोगों को डोली में बैठना शोभा नहीं देता, चलो इस अमीरी के बहाने किसी गरीब को कुछ रूपए मिल गए लेकिन अच्छा हो अगर यह लोग पैसे भी ज़िआदा दें .

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय भाईजी । आप भी हमारे साथ साथ चल रहे हैं सो आपका साथ पाकर हमें बड़ी ख़ुशी हुयी ।आपने सही फरमाया है ये हट्टे कट्टे अमीर इन डोलीवाले मजदूरों से काफी मोलभाव करके उन्हें कम से कम रूपया देना चाहते हैं । यात्रा के अन्य साधन जैसे हेलिकॉप्टर की सका का भी उपयोग कर सकते हैं । त्वरित और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय सइ धन्यवाद ।

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