कुण्डली/छंद

विधाता छ्न्द : राखी

मापनी -१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
बहन का प्यार है राखी जहाँ नित मर्म कहता है
लगाया प्राण की बाजी हुमायूँ धर्म कहता है
विधाता छ्न्द लिख बहना चरण छू कर कहे भाई
निभा दायित्व सुरक्षा का, यही मम कर्म कहता है

— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी
१९/०८/२०१६

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

2 thoughts on “विधाता छ्न्द : राखी

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा छंद. इसकी तर्ज़ राधेश्याम रामायण जैसी लग रही है.

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय जी आपकी आत्मीय स्नेहिल उत्साहवर्धक पसंद प्रतिक्रिया के लिए अंतस से कोटिश आभार संग नमन
      आदरणीय राधेश्यामी या मत्‍त सवैया छन्द मे ३२ मात्रा होती है

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