कविता

शर्म की परिभाषा

वाह रे नई पीढी
तूने तो शर्म की
परिभाषा ही बदल दी
सादगी, सादापन
बन गया गवारपन
धीरे-धीरे हो रहे हैं
सभी संस्कार दफन
रिश्ते नाते बोझ बन गए
अजनबी भी अब तो
दोस्त बन गए
आधूनिकता शान बन गई
सभ्यता और संस्कृति
शर्म की पहचान बन गई
शान समझते
सिगरेट फूंकने में
बड़ी शर्म आती इन्हें
बड़ों के आगे झुकने में
अतिचार इतना हावी हो गया
शिष्टाचार तो कल की
बात बन गई
नशाखोरी फैशन बना दी
वाह रे नई पीढी
तूने तो शर्म की
परिभाषा ही बदल दी |

नीतू शर्मा 'मधुजा'

नाम-नीतू शर्मा पिता-श्यामसुन्दर शर्मा जन्म दिनांक- 02-07-1992 शिक्षा-एम ए संस्कृत, बी एड. स्थान-जैतारण (पाली) राजस्थान संपर्क- neetusharma.prasi@gmail.com

6 thoughts on “शर्म की परिभाषा

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया रचना !

    • नीतू शर्मा

      आभार आदरणीय

  • अतुल बालाघाटी

    वाह्ह्ह्ह बहुत बहुत सुन्दर सृजन
    बिलकुल सत्य कहा आदरणीया नीतू जी

    नमन लेखनी को

    • नीतू शर्मा

      प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आदरणीय

  • राजकुमार कांदु

    प्रिय नीतूजी ! इतनी छोटी सी उम्र में यह उच्च कोटि की रचना । आपकी जीतनी तारीफ़ की जाए कम होगी । आज की युवा पीढ़ी की हर बुरी आदत पर आपने जम कर प्रहार किया है । वाकई नयी पीढ़ी ने शर्म की परिभाषा बदल दी है और मुझे पूरा यकीं है आप उनमे से नहीं हैं सो आपके मित्रों को आपका अनुसरण अवश्य करना चाहिए । एक अद्वितीय रचना के लिए आपका आभार ।

    • नीतू शर्मा

      बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय। मैं इतनी प्रशंसा के योग्य नहीं हूँ, सब बड़ों के आशीर्वाद और उनके संस्कारों की देन है। प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार

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