कविता

श्री राम वन गमन

ताटंक छंद-

वन को जाते बन सन्यासी,
राम लखन अरु माँ सीता ।
तीनों के बिन देखो कैसा,
अवध लगे रीता रीता ।
मात सुमित्रा अरु कौशल्या,
नैना नीर बहाती हैं ।
सुख सब अपने साथ ले गए,
खुशियाँ नहीं सुहाती हैं ।
दोनों भाई चलते आगे,
अरु पीछे माता सीता ।
तीनों के बिन देखो कैसा, अवध लगे रीता रीता ।

कभी नहीं जो चली धरा पर, काँटों हसती जाती है ।
चलकर पिय के कदम निशाँ पर,
खुद को धन्य बनाती है ।
चेहरे पर मुस्कान सजाकर,
पीडा सब हर लेती है ।
कदम मिलाकर चलती सँग में,
जीवन नैया खेती है।
चित्रकूट की कुटिया मैं पल
राजमहल सा है बीता।
तीनो के बिन देखो कैसा
अवध लगे रीता रीता।

अनुपमा दीक्षित मयंक

अनुपमा दीक्षित भारद्वाज

नाम - अनुपमा दीक्षित भारद्वाज पिता - जय प्रकाश दीक्षित पता - एल.आइ.जी. ७२७ सेक्टर डी कालिन्दी बिहार जिला - आगरा उ.प्र. पिन - २८२००६ जन्म तिथि - ०९/०४/१९९२ मो.- ७५३५०९४११९ सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन छन्दयुक्त एवं छन्दबद्ध रचनाएं देश विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रो एवं पत्रिकाओ मे रचनाएं प्रकाशित। शिक्षा - परास्नातक ( बीज विग्यान एवं प्रोद्योगिकी ) बी. एड ईमेल - adixit973@gmail.com

One thought on “श्री राम वन गमन

  • राजकुमार कांदु

    श्री रामजी के वनगमन का मर्मस्पर्शी चित्रण करने के लिए आपका धन्यवाद । बाध्य रचना ।

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