कविता

कविता : हे कृष्ण ! कहाँ छिपे हो

हे कृष्ण !
कहाँ छिपे हो
क्यों नहीं आते
क्यों नहीं लेते अवतार
क्या तुम भी घबराने लगे हो
इन कलयुगी वाशिन्दों से
या फिर
सुविधा शुल्क का रसपान
तुम्हें भी करवा दिया गया है
या फिर
इन्तज़ार कर रहे हो
रात के और काली हो जाने का
हे कृष्ण!
क्यों खामोश हो
अबलाओं का चीर हरण
देख कर भी
क्यों नहीं बढ़ाते साड़ी
हे कृष्ण!
दरबार ए राजनीति में
फिर से बिछी है बिसात
शतरंज की
कौड़ियाँ फेंकी जा रही हैं
शह और मात का सिलसिला
आज भी ज़ारी है
छोटे से छोटा प्यादा भी
राजा पर हावी हो रहा है
और
दाँव पर लगी है
भारत माँ
वो भीम भी अब
नजर नहीं आता
जो माँ के अपमान का
बदला लेने के लिए
प्रतिज्ञा करे
कुर्सी पर बैठे धृतराष्ट्र् तो
पहले ही अन्धे थे
और आज
बहरे भी हो गए हैं
अब तो पहचानना भी मुश्किल है
कि कौन पान्डव है
ओर कौन कौरव
अर्जुन भी कहीं नज़र नहीं आता
हे कृष्ण!
क्यों चुप हो
किसका इन्तज़ार है
क्यों नहीं लेते अवतार
हे कृष्ण!
कब लोगे अवतार??
@ नमिता राकेश