यात्रा वृत्तान्त

चलो कहीं सैर हो जाये-5

पुर्व कथा सार :
हम कुछ मित्र मुंबई से ट्रेन द्वारा जम्मू और फिर बस द्वारा कटरा पहुंचे । बाणगंगा में नहा कर आगे बढे ।बाणगंगा से आगे बढ़ते हुए हम अर्धक्वारी तक आ पहुंचे । अर्ध्क्वारी से आगे चलते हुए हम लोग भवन तक जा पहुंचे । अब आगे ………………

यहाँ रास्ता थोडा संकरा हो गया था लिहाजा भीडभाड थोड़ी ज्यादा लग रही थी । सुबह के पांच बजनेवाले थे । पौ फटने का समय अब करीब ही था । लगभग सौ मीटर आगे बढ़ने पर दुकानों की पूरी श्रंखला दिखाई पड़ी । दायीं तरफ दुकानों के सामने ही बेतरतीब खड़े लोगों की एक कतार थी । पूछने पर पता चला माताजी के दर्शन के लिए कतार लगी है ।

बायीं तरफ चेक पोस्ट था जहां सुरक्षा जांच के बाद हम लोग आगे बढे । जरूरी निर्देश बार बार उदघोषक द्वारा प्रसारित किये जा रहे थे । प्रसाधन और अमानत घर कई जगह बनाये गए थे लेकिन यात्रियों की बड़ी संख्या के कारण अपर्याप्त दिखाई दे रहे थे ।

क्लॉक रूम के सामने कतार काफी लम्बी दिखाई पड़ रही थी । थोड़ी ही दूर चले होंगे की एक जगह मार्ग से हटकर थोड़ी ख़ाली जगह देख हम लोग वहीँ रुक गए । सारा सामान वहीँ रखकर तौलिया और कपडे लेकर हम लोग आगे स्नानघर की तरफ बढ़ गए जो थोड़ी ही दुरी पर था । हमारा एक साथी वहीँ सामान की देखभाल के लिए बैठा रहा ।

भवन के सामने ही थोड़ी निचे की तरफ स्नानघर और उससे भी निचे प्रसाधन गृह बना हुआ था । दूसरी तरफ महिलाओं के लिए भी इसी तरह से सुविधाओं को दर्शाता बोर्ड लगा था । स्नानघर के नाम पर निचे एक छोटे से कमरे में पानी की सात आठ टोंटियाँ लगी थीं जिनसे पानी अनवरत बह रहा था और उसीमें सब एक दुसरे में घुस कर नहा रहे थे ।

जहां जम्मू में गर्मी से बेहाल हो रहे थे वहां से सिर्फ पचास किलोमीटर दूर और कुछ ऊपर आकर ठण्ड के मारे नहाने की हिम्मत नहीं हो रही थी । कुछ लोग पूरा शरीर भीगा भी नहीं पा रहे थे और नल के निचे से निकल आते थे । ऐसा लग रहा था जैसे नहाने की औपचारिकता पूरी कर रहे हों । कुछ लोगों की हरकतें देख कर हम भी हतोत्साहित हो जाते तभी दो लोग वहीँ लगातार नल के निचे ही बने हुए थे और अच्छी तरह नहा रहे थे । उन्हें देखकर अपने कपडे साथ वाले कमरे में रखकर हम दो साथी नहाने के लिए हिम्मत जुटाकर नल के निचे खड़े हो गए ।

एकबार तो हमें लगा जैसे हमारी कुल्फी जम जाएगी लेकिन हम डेट रहे और कुछ ही क्षणों बाद हम नहाने का आनंद ले रहे थे । रात भर चलने के बाद जो थकान और आलस महसूस हो रही थी पल भर में दूर हो गयी थी । हम और नहाना चाह रहे थे लेकिन पीछे नहानेवालों की लम्बी कतार लगी देख जल्दी ही बाहर आ गए । अपने बचे हुए साथियों को नहाने के लिए भेजकर हम नए कपडे पहनकर तैयार हो गए थे ।

तीर्थस्थानों अथवा अन्य कहीं भी भीडभाड वाली सार्वजनिक जगहों पर सावधानीवश अपने सामान की हिफाजत स्वयं करनी चाहिए । इसीलिए हम लोग बारी बारी से नहाने गए थे । थोड़ी ही देर में हम सभी लोग नहा धोकर अपने अपने कपडे थैलों में भर कर लाकर के लिए कतार में खड़े थे ।

मोबाइल पर्स बेल्ट वगैरह मंदिर में प्रतिबंधित है इसकी सूचना बार बार उद्घोषक द्वारा दी जा रही थी लिहाजा हम लोगों ने कुछ नगद जेब में रखकर बाकि सब सामान कपड़ों के साथ ही थैलों में रख चुके थे । दर्शन कर चुके यात्री वापस आकर लोकर खाली करते और वही लोकर कतार में खड़े अगले यात्री को दिया जाता । बहुत ही धीमी रफ़्तार से कतार आगे बढ़ रही थी ।

लगभग आधा घंटे बाद हम लोग पर्ची दिखाकर लोकर पाने में कामयाब रहे । अपने अपने लोकर में अपने थैले और अंत में जुते रखकर प्रसाद की थैली हाथों में संभाले हम लोग ऊपर की तरफ बाहर आये ।

माताजी के दर्शनों के लिए लगी कतार के अंतिम सिरे तक पहुँचने के लिए हम लोगों को काफी पीछे की तरफ चलना पड़ा । लगभग दो सौ मीटर पीछे जाकर कतार के अंतीम सिरे से हम लोग कतार में शामिल हो गए । कतार में अव्यवस्था बिलकुल साफ़ नजर आ रही थी । कई लोग पीछे के आगे तो कई बिच में ही घुसने की जुगत लगा रहे थे ।

माताजी के दर पर दर्शन की कतार में भी कुछ लोग अपना रोजमर्रा के रंग दिखाने से बाज नहीं आ रहे थे । इन लोगों की तरफ ज्यादा ध्यान न देकर हम लोग मन ही मन माताजी के गुणगान कर उन्हें याद करते हुए कतार में आगे की तरफ अग्रसर थे ।

अब तक सुबह का धुंधलका छट चूका था और सूर्य की चमकदार रश्मियों ने सारी सृष्टि पर अपना आधिपत्य जमा लिया सा प्रतीत हो रहा था । कतार में खड़े खड़े ही भीड़ हटने पर हम थोड़ी देर के लिए कुदरत के अनुपम नज़ारे का रसपान कर लेते ।

अब तक सुबह के लगभग छह बजे से कुछ अधिक का वक्त हो चला था । कतार में धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए हम लोग एक सुरक्षा जाँच के बाद और आगे बढे ।

यहाँ कतार के लिए लोहे की पाइप द्वारा निर्माण कार्य किया गया था । फिर भी कुछ उत्साही श्रद्धालु जो शायद ज्यादा जल्दी में थे निरंतर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे ।

पिछले लगभग आधे घंटे से कतार आगे बढ़ ही नहीं रही थी । कतार में बिना कारण जाने एक ही जगह खड़े रहना काफी दुष्कर कार्य है । तभी आगे कुछ उत्साही भक्तों की टोली माता के भजन गाने लगी ।

अचानक मुझे याद आ गया की लगभग इसी समय तो श्रद्धा भक्ति चैनल पर माताजी की आरती का जीवंत प्रसारण होता है । कतार में ही नियमित रूप से आनेवाले किसी यात्री ने बताया माताजी की आरती हो रही है इसीलिए दर्शन रोका गया है ।

हम लोग भी ध्यान से आगे वाली टोली द्द्वारा गाये जानेवाले भजन सुनने लगे और मन को माताजी की तरफ एकाग्र करने का प्रयत्न करने लगे ।

अब तक कतार में खड़े अधिकांश लोग निचे ही बैठ चुके थे । लगभग एक घंटे तक इसी तरह माताजी के भिन्न भिन्न भजनों का श्रवण माहौल को एकदम भक्तिमय बना चूका था । लगभग सभी दर्शनार्थी भक्तिभाव में डूब चुके थे ।

आरती समाप्त होने के बाद कतार फिर धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी । काफी दूर जाने के बाद हमें एक जगह एक पुजारीजी मिले जो सभीसे पूजा के थैले से नारियल लेकर बदले में उन्हें एक विशिष्ट टोकन दे रहे थे । सभी का अनुसरण करते हुए हमने भी अपने अपने नारियल उन्हें सौंपकर टोकन प्राप्त कर लिया ।

कई घुमावदार सीढियों पर ऊपर निचे होते हम लोग अंततः माताजी की गुफा के सम्मुख जा पहुंचे । गुफा का वह मनोरम दृश्य जो हमें अक्सर अपने टी वि स्क्रीन पर माताजी की आरती का जीवंत प्रसारण देखते समय दिखता था वह साक्षात् हमारे सामने था ।

एक सुन्दर सी गुफा और उसमें रखी तीन पिंडियों के स्वरुप में माताजी का दर्शन होते ही हम नतमस्तक हो गए और माताजी को हाथ जोड़कर प्रणाम किया । गुफा के प्रवेश द्वार पर दोनों तरफ दो स्वर्णिम सिंह सुशोभीत नजर आ रहे थे ।

सामने ही एक बड़ा सा दालान दिख रहा था । एक तरफ नगाड़े तो वहीँ एक कोने में माइक वगैरह दिख रहे थे । संभवतः यह सभी चीजें आरती के समय उपयोग में लायी जाती होंगी । दालान के उपरी हिस्से की दीवारें माताजी के विभिन्न स्वरूपों की तस्वीरों से सुशोभित थीं । लेकिन यहाँ हमें थोड़ी दुरी से ही दर्शन कर संतोष करना पड़ा । कतार और आगे बढ़ रही थी । हम भी साथ ही आगे बढ़ गए ।

इस गुफा के बगल में ही दो अन्य गुफाएं थीं । इनमें से एक गुफा में एक तरफ से लोग प्रवेश करके दूसरी तरफ से बाहर निकल रहे थे ।

हम भी भीड़ के साथ धीरे धीरे गुफा में प्रवेश कर गए ।गुफा लगभग आठ फीट चौड़ी और और इतनी ही ऊँची सफ़ेद टाइल्स बिछी हुयी सुशोभित नजर आ रही थी । बीच में एक स्टील की मोटी पाइप द्वारा गुफा में प्रवेश और निकास मार्ग को विभक्त किया हुआ था । कई जगह से पानी की छोटी छोटी धाराएँ निकल रही थीं मानो सन्देश दे रही हों अपने चरण पखार कर माता जी के दर्शनों को आगे बढ़ें ।

अब हमें गुफा में अन्दर बैठे एक पुजारीजी स्पष्ट दिख रहे थे और उनके सामने ही माताजी तिन पिंडियों के स्वरुप में विराजमान थीं । एक ज्योत जल रही थी और पिंडी स्वरुप माताजी लाल चुनर सिंदूर और फूलों से सुशोभित थीं । बड़ा ही नयनरम्य दृश्य था ।

हम तो अपनी बारी आने से पहले ही आगे झुककर सभी दृश्यों का अवलोकन कर रहे थे । पुजारीजी सभी दर्शनार्थी को माताजी के पिंडी स्वरुप की जानकारी देते हुए उन पिंडियों पर ही ध्यान केन्द्रित करने का निर्देश दे रहे थे ।

माताजी के नमन को झुके यात्री के पीठ पर हौले से ठोक कर उसे आशीर्वाद देते हुए गुफा से बाहर जाने का निर्देश देते । यह सारी प्रक्रिया सुचारू रूप से चल रही थी हम निरंतर आगे बढ़ते हुए अपनी बारी आने पर माताजी के दिव्य स्वरूप को नमन कर उसे अपनी आँखों में बसा पुजारीजी से आशीर्वाद प्राप्त कर गुफा से बाहर निकले ।

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

4 thoughts on “चलो कहीं सैर हो जाये-5

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राज कुमार भाई , यात्रा का आनंद ले रहे हैं और बरफ जैसे पानी से नहाना बहुत मुश्किल लगता है लेकिन एक दफा शुरू हो जाए तो फिर मज़ा भी आने लगता है .हम यहाँ गर्म पानी से ही नहाते हैं लेकिन जब इंडिया आते थे तो नल के निचे नहाना पहले बहुत मुश्किल लगता था लेकिन बाद में इस के आदी हो जाते थे .इस धार्मिक अस्थान की इत्हासिक महत्ता का भी पता लग जाता तो और भी मज़ा आता .

    • राजकुमार कांदु

      जी आदरणीय भाईजी ! आपने सही कहा । ठन्डे पानी से नहाना वाकई थोडा मुशकील होता है पर थोड़ी ही देर में हमारा शरीर उस तापमान के मुताबिक अपनेआपको ढाल लेता है और फिर मजा आने लगता है । माता वैष्णोदेवी की कहानी भी संक्षेप में आनेवाली कड़ियों में शामिल रहेगी । आपको यात्रा का आनंद आ रहा है और मैं समझ रहा हूँ की आप भी हमारे साथ ही चल रहे हैं । बहुत ही उत्साहवर्धक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद ।

  • लीला तिवानी

    प्रिय राजकुमार भाई जी, जय माता दी-
    ”मैय्या हमको तेरा बड़ा सहारा है,
    तेरा सुंदर रूप निराला है.”
    हर्ष सहित सर्वश्रेष्ठ एवं अतुलनीय रचना के लिए आभार.

    • राजकुमार कांदु

      श्रद्धेय बहनजी ! मैया का रूप निराला और सबको उनका ही सहारा है । अतिसुन्दर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद ।

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