गीत/नवगीत

गीत : तुम आ जाओ

 

हो तुम जहाँ रहती हो साँसों में
यादो के भोरे मडराने लगते है रातों में
बनके चाँदनी तुम दिल में उतर जाओ
हवा का झोंका बन तुम आजाओ

दिल से लगी है दिल की लगन
दिल में उगा दें प्यार की अगन
हवाओं में फैली हैं मस्तियाँ
बनके मोती तुम माला बन जाओ

कली कली पर मदिरा पन छाया है
दिल मन्दिर ने प्यार का सौरभ पाया है
अंग अंग में बनके तुम बहार छाजाओ
नयनों का कजरा बन तुम संवार जाओ

कोयल की कूक से सजने लगी हैं राहें
इंतजार की घड़ी में हम फैलाये हैं बाहें
बनके चन्दन तुम लिपट जाओ
आँखों में आँखें डाले तुम आजाओ

— सन्तोष पाठक

संतोष पाठक

निवासी : जारुआ कटरा, आगरा