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विधाता के लेख

विधाता के लेख भी बड़े प्रखर होते हैं न्यायाधीश की लेखनी से निकले शब्द पुनरावलोकन के लिए प्रेषित किए जा सकते है हाईकोर्ट से केस सुप्रीम कोर्ट जा सकता है, कभी -कभी शंका या यथार्तता के अंतरजाल से उद्भित शब्द क्या कभी धारणा में बदलते हुए जन सामान्य ने देखा है. अंतर्मन का दर्पण यथार्त का बोध कराता है, कभी- कभी मन के कोने में छिपी हुई अहम की पट्टिका सत्य से आँख मिचोली करती निकल जाती है और अपने पीछे छोड़ जाती है एक विशद प्रश्न ——— मानव ज्ञानी होते हुए भी अज्ञान का आश्रय क्यों लेता है क्यों उन्हें न्याय -अन्याय, अपना-पराया सत्य -असत्य का विभेद करना दुस्तर प्रतीत होने लगता है, कभी -कभी शब्द शूल बन जाते हैं अपने पराए भूल जाते हैं. राजनैतिक भाषा मे शीत युद्ध कहते हैं पूर्व सोवियत संघ संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच इस प्रकार के युद्ध हुआ करते थे, पत्र पत्रिका बयानबाज़ी से सहज युद्ध न होकर चिंगारी का कार्य करती थी अहम द्वार का पहरेदार होता था आज विद्वत जनों के बीच वैचारिक वैमनस्यता का द्वन्द से साहित्यिक मंच भी हतप्रभ हैं. हम प्रतिस्पर्धा का समर्थन करते हैं प्रतिस्पर्धासे ज्ञान में निखार आता है साहित्य को नव दिशा प्राप्त होती है, तर्क की कसौटी पर कसा शब्द हीरे की तरह खरा होता है. किसी शब्द की प्रामाणिकता सार्वजनिक होनी चाहिए सभी को अपने विचार रखने की पूर्ण स्वयत्ता प्राप्त हो, साहित्यकारों का पुनीत धर्म सत्य को सहज स्वीकार करना एवम् ओछी प्रतिक्रिया से बचें. साहित्य सृजन के लिए अहम के दरवाजे बंद रखे – इन्ही शब्दों के साथ हम विद्वत जनों का नमन करते है जय माँ शारदे ———

राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी
रविवार २८.०८.२०१६

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

3 thoughts on “विधाता के लेख

  • राजकुमार कांदु

    पत्रकारिता का धर्म बयान करने के लिए धन्यवाद् ।

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    आदरणीया बहन जी आपकी आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए आभार संग प्रणाम

  • लीला तिवानी

    प्रिय राजकिशोर भाई जी, साहित्यकारों का पुनीत धर्म सत्य को सहज स्वीकार करना एवम् ओछी प्रतिक्रिया से बचें. बहुत सुंदर. एक सटीक व सार्थक रचना के लिए आभार.

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