कविता

कविता : समझदार हो के जीना… हमें भाता नहीं है

है उम्र गुज़ारी हमने,
किताबों के सफ़र में !
जिन्दगी को सुलझाना,
हमें आता ही नहीं हैं !!

न जाने कितने चेहरे,
हैं नकाब ओढ़े बैठे !
दिखावट-भरे ये चेहरे,
दिल पढ़ पाता ही नहीं हैं !!

काश ! फिर से जा पाते,
बचपन के हसीं सफ़र में….
समझदार हो के जीना,
हमें तो भाता ही नहीं है !!

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed

2 thoughts on “कविता : समझदार हो के जीना… हमें भाता नहीं है

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

    • अंजु गुप्ता

      शुक्रिया जी

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