गीतिका/ग़ज़ल

ग़जल

सबको वो देखता है, सब उसकी नज़र है,
ना फिक्र करो लोगों, उसे सबकी फिकर है!

मुश्किल बडी राहें मेरी, हैं गुमनाम मंजिले,
तन्हा कटेगा कैसे, बडा लंबा सफर है!

समझा नहीं कभी भी, कोई उसकी फितरतें,
रखता है प्यार आंखों में, बातों में ज़हर है!

धुंआ भी और गुबार भी, बस आग है हर सू,
चिंगारियां नफरत की है, और जलता शहर है!

रंगीन सी तबियत हुई, है चेहरे पे नूर “जय”,
कुछ और नहीं बस तेरी, सोहबत का असर है!

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से

2 thoughts on “ग़जल

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

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