कविता

कविता : जयचंदों की संख्या बढ़ने लगी

जयचंदों की संख्या बढ़ने लगी,
बरदाई का आना बाकी है।
इन जयचंदो को जड़ से
उखाड़ना पछाड़ना बाकी है।।

गांधी प्रतिमा पर बमक रहे
देश द्रोह में बहक रहे
कुर्सी पाने की चाहत में
माँ के दुश्मन भभक रहे।।

सारे देश द्रोहियों का अब
निष्कासन होना बाकी है।।
जयचंदो की संख्या बढ़ने लगी…

कपूत की खातिर लड़ रहे
कौरव देखो फिर बढ़ रहे
सीमा पर जो हो गए शहीद
उनको रुसवा कर रहे।।

चाणक्य कहाँ तुम सोए हो,
जन जागरण होना बाकी है।।
जयचंदों की संख्या बढ़ने लगी..

#निवेदिता

2 thoughts on “कविता : जयचंदों की संख्या बढ़ने लगी

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया सामयिक कविता !

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया सामयिक कविता !

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