लघुकथा

लघुकथा – दिवा स्वप्न

मम्मी के मंगल-सूत्र , दादाजी की ड्रेस , भाई के मोबाइल और सेठजी के तकाजे के बीच रीना ने कहा, ” बापू ! मेरी १२ वी बोर्ड की परीक्षा की फीस जमा हो जाएगी ना ?”

” हाँ , रीना बिटिया ! देखता हूँ ,” बापू ने बेमौसम बरबाद हुई फसल के राहत के चैक को लिफाफे को खोलते हुए कहा , ” देखता हूँ ,कितने रूपए का मुआवजा मिला है ?”

दूसरे ही क्षण , ” धत्त तेरी की “, कहते हुए बापू ने 750 रूपए का चैक नीचे जमीन पर फेक कर अपना माथा पकड़ लिया.

 

*ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

नाम- ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जन्म- 26 जनवरी’ 1965 पेशा- सहायक शिक्षक शौक- अध्ययन, अध्यापन एवं लेखन लेखनविधा- मुख्यतः लेख, बालकहानी एवं कविता के साथ-साथ लघुकथाएं. शिक्षा-बीए ( तीन बार), एमए (हिन्दी, अर्थशास्त्र, राजनीति, समाजशास्त्र, इतिहास) पत्रकारिता, लेखरचना, कहानीकला, कंप्युटर आदि में डिप्लोमा. समावेशित शिक्षा पाठ्यक्रम में 74 प्रतिशत अंक के साथ अपने बैच में प्रथम. रचना प्रकाशन- सरिता, मुक्ता, चंपक, नंदन, बालभारती, गृहशोभा, मेरी सहेली, गृहलक्ष्मी, जाह्नवी, नईदुनिया, राजस्थान पत्रिका, चैथासंसार, शुभतारिका सहित अनेक पत्रपत्रिकाआंे में रचनाएं प्रकाशित. विशेष लेखन- चंपक में बालकहानी व सरससलिस सहित अन्य पत्रिकाओं में सेक्स लेख. प्रकाशन- लेखकोपयोगी सूत्र एवं 100 पत्रपत्रिकाओं का द्वितीय संस्करण प्रकाशनाधीन, लघुत्तम संग्रह, दादाजी औ’ दादाजी, प्रकाशन का सुगम मार्गः फीचर सेवा आदि का लेखन. पुरस्कार- साहित्यिक मधुशाला द्वारा हाइकु, हाइगा व बालकविता में प्रथम (प्रमाणपत्र प्राप्त). मराठी में अनुदित और प्रकाशित पुस्तकें-१- कुंए को बुखार २-आसमानी आफत ३-कांव-कांव का भूत ४- कौन सा रंग अच्छा है ? संपर्क- पोस्ट आॅफिॅस के पास, रतनगढ़, जिला-नीमच (मप्र) संपर्कसूत्र- 09424079675 ई-मेल opkshatriya@gmail.com

7 thoughts on “लघुकथा – दिवा स्वप्न

  • विजय कुमार सिंघल

    करारी लघुकथा ! यह आज के शासन के मुंह पर एक तमाचा है.

    • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

      आदरनीय विजय कुमार सिंघल जी शुक्रिया आप का.

  • विजय कुमार सिंघल

    करारी लघुकथा ! यह आज के शासन के मुंह पर एक तमाचा है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    यह तो ७५० रूपए मिल ही गिया , यह भी शुकर ही समझो किः इन सात सौ रुपयों को लेने के लिए हज़ार रुयय खर्चने नहीं पढ़े . पंजाबी में कहता हूँ ,” फिट्टे मुंह ऐसे निजाम को, जिस में अन्दाता ही भूखों मर रहा है “

    • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

      आदरनीय गुरमेल सिंह जी आप का अमूल्य और अतुल्य मतांकन प्राप्त कर मुझे अपार ख़ुशी हुई . शुक्रिया आप का .

  • राजकुमार कांदु

    बहुत खूब आदरणीय ! सरकारी राहत के नाम पर गरीबों की गरीबी का मजाक ही उड़ाया जाता है ।

    • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

      शुक्रिया आदरनीय राजकुमार जी . आप ने लघुकथा का समर्थन किया.

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