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भारत का भाषिक वैविध्य और हिंदी का वर्तमान परिदृश्य (आलेख )

स्वततंत्रता प्राप्ति के साठ वर्षों के बाद भी हिन्दी अपने संविधान प्रदत्त अधिकारों से वंचित है । अब तक तो इसे संपूर्ण रूप से राजकाज  की भाषा बन जाना चाहिए था परंतु दुर्भाग्यवश आज भी अंग्रेजी ही शासन-प्रशासन की मुख्य भाषा बनी हुई है । बार-बार लोगों को हिन्दी की महत्ता  का   स्मरण कराना पड़ता है, परंतु अनेक अवरोधों, मानसिक जड़ता और वैचारिक भिन्नताओं के बावजूद हिन्दी अपनी सरलता, आंतरिक ऊर्जा और जनता से जुड़ाव के कारण निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है । देश के दूरस्थ अंचल तक हिन्दी का पुण्य आलोक विकीर्ण हो चुका है । कमोबेश संपूर्ण देश में यह संपर्क भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है । इसमें अन्य भारतीय भाषाओं-लोकभाषाओं के शब्दों को पचा लेने की अदभुत क्षमता है । इसी क्षमता के कारण हिन्दी की स्वीकार्यता में अभिवृद्धि हो रही है । हिन्दी ऐसी महानदी है जो देश के सभी घाटों से गुजरती है एवं सभी घाटों के कंकड़-पत्थर,मिट्टी, रेतकण आदि को समेटते तथा अपनी प्रकृति के अनुरूप उन्हें आकार देते हुए आगे बढ़ती है । इसकी धीर-गंभीर जलधारा के संस्पर्श से आंचलिक शब्द भी हिन्दीकृत होकर साहित्यिक गरिमा प्राप्त कर लेते हैं । हिन्दी का सानिघ्य गुमनाम आंचलिक शब्दों को भी राष्ट्रीय पहचान देता है । लोकभाषाओं के शब्द, शैली और चिंतन-सरणि से यह समृद्ध व समर्थ बनती है । महान कथाकार फणीश्वतरनाथ रेणु की सशक्त लेखनी ने कोशी अंचल के असंख्य शब्दों को नई अर्थवता दी, जैसे कुकुरमाछी, कलेवा, पगहिया, हथछुट्टा, बत्ती, भुकभुकाना, टीशन (स्टेशन), राकस (राक्षस) उड़नजहाज आदि (‘लाल पान की बेगम’ कहानी से उद्धृत) इसी प्रकार नागार्जुन  ने मिथिलांचल के शब्दों, वचन-भंगिमाओं और मुहावरों को व्यापक क्षितिज प्रदान किया, शैलेश मटियानी ने कुमायूं के पर्वतीय अंचल के शब्द, लोकोक्ति आदि को राष्ट्रीय फलक पर प्रस्तुनत किया, रांगेय राघव ने मथुरा के आसपास प्रचलित शब्दों को  अपनी लेखनी द्वारा राष्ट्रीय पहचान दी ।
हिन्दी कहीं तेलुगु से प्रभावित होती है, तो कहीं बंगला से, कहीं मराठी से प्रभाव ग्रहण करती है, तो कहीं असमिया से, कहीं नागामी से प्रभावित होती है, तो कहीं गुजराती से । इतना ही नहीं हिन्दी क्षेत्र की बोलियां भी हिन्दी को प्रभावित करती हैं । इसलिए, भोजपुरी क्षेत्र में बोली जाने वाली हिन्दी मे भोजपुरी का पुट होता है, दिल्ली की हिन्दी में हरियाणवी की सुगंध होती है, मिथिलाचंल को हिन्दी में मैथिली का माधुर्य होता है एवं विंध्य क्षेत्र की हिन्दी में निमाड़ी की छौंक होती है । यह ग्रहणशीलता ही हिन्दी की सबसे बड़ी शक्ति है । यह भी उल्लेखनीय है कि इतनी भाषाओं-बोलियों से प्रभाव ग्रहण करने के बाद भी इसके मूल चरित्र में कोई बदलाव नहीं होता । यह जीवित व विकासमान भाषा का लक्षण है । जहां अन्य भारतीय भाषाएं एक-दो प्रदेशों तक सीमित हैं, हिन्दी व्यापक क्षेत्रों में बोली जाती है । इसलिए अन्य भारतीय भाषाओं में धीमी गति से परिवर्तन होते हैं, परन्तु हिन्दी में परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत तीव्र है । यह विशेष रूप से द्रष्टव्य  है कि अन्य भारतीय भाषाओं में तत्सम शब्दोंं का बाहुल्य है लेकिन हिन्दी में  बहुत बड़ी संख्या  में तद्भव, देशज एवं विदेशज शब्द विद्यमान हैं ।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 351 देश में भाषायी सम्प्रीति स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल करता है । यह अनुच्छेेद सभी भारतीय भाषाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है । सभी भारतीय भाषाएं पुष्पित-फलित हों, अपने-अपने प्रदेशों में राजकाज की भाषा बनें एवं हिन्दी सभी भाषाओं के पराग को ग्रहण व आत्मसात करते हुए राजभाषा एवं संपर्क भाषा के रूप में देश की सामसिक संस्कृति को प्रतिबिंबित करें, इसी मूल संकल्पना पर भारत की राजभाषा नीति आधारित है । जिस प्रकार देश के विशाल मानव संसाधन को उचित प्रशिक्षण एवं सही मार्गदर्शन देकर आर्थिक-सामाजिक उन्नयन का सबल उपकरण बनाया जा सकता है उसी प्रकार भारत की अन्य भाषाओं में अंतर्भुक्त लोकतत्वों को स्वीकृत तथा आत्मसात कर हिन्दी को सर्वस्वीकार्य और इसके फलक को विस्तृत बनाया जा सकता है ।
भारत एक बहुभाषाभाषी विशाल देश है । यहॉं 1652 भाषाएं और बोलियॉं बोली जाती हैं जिनमें से 22 भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है । अष्टम अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं में से अधिकांश भाषाएं किसी न किसी प्रदेश की राजभाषा है, परन्तु कुछ ऐसी भाषाओं को भी इस अनुसूची में सम्मिलित किया गया है जो किसी राज्य की राजभाषा नहीं है, जैसे, सिंधी, डोगरी, संस्कृत, मैथिली आदि । अंग्रेजी भाषा को अष्टम अनुसूची में नहीं रखा गया है परंतु नागालैंड, मेघालय जैसे राज्यों में अंग्रेजी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है । कुछ राज्यों में वहॉं की राजभाषा के साथ-साथ अंग्रेजी के प्रयोग का भी प्रावधान किया गया है, जैसे, मणिपुर में मणिपुरी तथा अंग्रेजी, केरल में मलयालम तथा अंग्रेजी के प्रयोग की भी व्यवस्था है । कुछ भाषाएं ऐसी भी हैं जिन्हें विभिन्न प्रदेशों में राजभाषा का दर्जा दिया गया है परंतु उन भाषाओं को संविधान की अष्टम अनुसूची में सम्मिलित नहीं किया गया है, जैसे मिजोरम में मिजो भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया है परंतु मिजो भाषा अष्टम अनुसूची में शामिल नहीं है । सिक्किम सरकार ने  11  भाषाओँ को राजभाषा घोषित किया है  लेकिन  इनमें से केवल नेपाली भाषा को आठवीं अनुसूची में रखा गया है, शेष  भाषाओं को इस अनुसूची में स्थान नहीं दिया गया है । त्रिपुरा की राजभाषा बंगला तथा काकबराक है I  बंगला तो अष्टम अनुसूची में शामिल है परंतु काकबराक नहीं । गुजरात एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने गुजराती और हिन्दीे दोनों को राजभाषा घोषित किया है । कुछ राज्यों में उनकी राजभाषा के अतिरिक्त कुछ प्रयोजनों के लिए अन्य भाषाओं का प्रयोग करने की व्यवस्था  है । उत्तर प्रदेश, बिहार, आन्ध्रप्रदेश में कुछ विशिष्ट प्रयोजनों के लिए उर्दू का प्रयोग करने का प्रावधान है । पश्चिम बंगाल में कुछ क्षेत्रों में नेपाली भाषा का प्रयोग करने की व्य्वस्था है । पांडिचेरी में अलग-अलग क्षेत्रों में तमिल, मलयालम तथा तेलुगु राजभाषाएं हैं । गोवा में कोंकणी के साथ ही मराठी भाषा का प्रयोग स्वीकार्य  है । केरल में तमिल तथा कन्न‍ड़ भाषा के प्रयोग की भी व्यावस्था है । हरियाणा सरकार ने संस्कृत, उर्दू, तेलुगु तथा पंजाबी को भी द्वितीय भाषा का दर्जा दिया है । असम के बराकघाटी के लिए बंगला को राजभाषा बनाया गया है जबकि कार्बी आंगलांग तथा उत्तरी कछार के पर्वतीय जिलों के लिए अंग्रेजी राजभाषा है । असम के कोकराझार, नालवाड़ी आदि बोडो बहुल जिलों के लिए बोडो को सहभाषा के रूप में प्रयोग करने का प्रावधान है । छत्तीसगढ़ सरकार ने हिन्दीे के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रयोग का भी प्रावधान किया है। हिंदी संघ की राजभाषा है और देश के व्यापक भूभाग में बोली जाती है । देश के ग्यारह राज्यों ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया है- बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड,मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली तथा अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह। हिंदी भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है । संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाओं में से लगभग आधी भाषाएं देवनागरी लिपि में लिखी जाती है । हिंदी के  अतिरिक्त संस्कृत, मैथिली, मराठी, डोगरी, संथाली, बोडो, सिंधी, कोंकणी की लिपि देवनागरी है । गुजराती भाषा की लिपि देवनागरी का ही एक रूप है । गुजराती लिपि  ने  देवनागरी की शिरोरेखा से स्वयं को मुक्त कर लिया है तथा कुछ अक्षरों की आकृतियां बदल ली हैं । इसी प्रकार पंजाबी भाषा की गुरूमुखी लिपि भी देवनागरी का ही परविर्तित अवतार है । वैसे तो कोंकणी भाषा कन्नड़, रोमन तथा मलयालम लिपियों में भी लिखी जाती है किंतु गोवा सरकार ने देवनागरी लिपि में लिखित कोंकणी को ही राजभाषा स्वीकार किया है । इसी प्रकार सिंधी भी तीन लिपियों में लिखी जाती है- देवनागरी, गुरूमुखी और अरबी, लेकिन अधिकांश लोग सिंधी भाषा के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग करते हैं । मणिपुरी भाषा के लिए 18वीं शताब्दी में बंगला लिपि को स्वीकार  किया गया लेकिन मणिपुरी भाषी अब बंगला लिपि को हटाकर मणिपुरी लिपि को अपनाने के लिए आंदोलनरत हैं । कुछ लोग मणिपुरी के लिए देवनागरी लिपि का भी प्रयेाग करते हैं ।
हिन्दी तो अब लोगों की आवश्यकता बन चुकी है । इसके बिना कोई राजनेता अपनी राष्ट्रीय पहचान नहीं बना सकता, कोई समाज सुधारक अथवा धार्मिक नेता हिन्दी ज्ञान के अभाव में पूरे देश में अपने विचारों को संप्रेषित नहीं कर सकता । इसलिए सफल राजनेता, धर्मप्रचारक और समाज सुधारक बनने के लिए हिन्दी  ज्ञान अनिवार्य है । हिन्दी अब विज्ञापन की भी भाषा बन गई है । हिन्दी के विस्तृत बाजार को देखकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी महसूस किया कि यदि उत्पादों की बिक्री में उछाल लाना है तो अंग्रेजी का दामन छोड़कर हिन्दी की शरण में जाना ही पड़ेगा । बाजार की विवशता ने ही इन कंपनियों को हिन्दी में विज्ञापन देने के लिए बाध्य किया है । इन कंपनियों को ज्ञात है कि एक-दो प्रतिशत अंग्रेजी जानने वाले लोग इसके उत्पादों की बिक्री के ग्राफ को उत्कर्ष पर नहीं पहुंचा सकते । इन विज्ञापनों ने हिन्दी को तराशने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । ये विज्ञापन ऐसे मनोहर व कवित्वपूर्ण होते हैं कि बच्चों के साथ-साथ व्यस्कों की जुबान पर भी चढ़ जाते हैं । संगीतमय और अर्थगर्भित ऐसे विज्ञापनों ने हिन्दी को नई भाव-भूमि से परिचित कराया है । इन विज्ञापनों में भारतीयता की छाप होती है, इसलिए ये मन को स्पर्श करते हैं । अंग्रेजी के विज्ञापनों में देशी छौंक देने के लिए हिन्दी-अंग्रेजी मिश्रित शब्दों का प्रयोग होने लगा है, यथा महालोन मेला,पटाका ऑफर, पक्का प्राइज, मानसून महा ऑफर, फेस्टीवल धूम, बेडसीट उत्सव इत्यादि।
आरंभिक अवरोधों को पारकर हिंदी अब इंटरनेट के राजपथ पर कुलांचे भरने लगी है । हजारों हिंदी पुस्तकें, कविता कोश, गद्यकोश, जालपत्रिकाएं, ब्लॉ‍ग इंटरनेट पर उपलब्ध हैं । सी-डेक द्वारा विकसित जिस्ट प्रणाली से ऐसा कुंजीपटल उपलब्ध हो गया है जिस पर एक साथ अनेक भारतीय भाषाओं में काम करना संभव है । इस प्रणाली में सभी भारतीय भाषाओं के लिए कुंजी पटल एक हैं । इसलिए एक भाषा की सामग्री को दूसरी भाषाओं में सफलतापूर्वक लिप्यंतरित किया जा सकता है । ‘अक्षर फॉर विंडोज’ में वर्तनी संशोधक, शब्दाकोश, मेल-मर्जर आदि सुविधाएं उपलब्ध हैं जिससे हिंदी प्रयोग को गति मिली है । आर.के. कंप्यूटर  रिसर्च फाउंडेशन ने ‘सुलिपि’ नाम से अत्यंत उपयोगी सॉफ्टवेयर विकसित किया है जो लेखा संबंधी कार्यों को आसान बनाता है । सी-डेक, पुणे द्वारा विकसित लीप ऑफिस 2000 भारतीय भाषाओं में कार्य करने का मार्ग प्रशस्त करता है । इसके द्वारा अंग्रेजी व हिंदी के अतिरिक्त अन्य दस  भारतीय भाषाओं की लिपियों में कार्य किया जा सकता है । सुरभि प्रोफेशनल,आई.लिप, बैंक मित्र, श्रीलिपि अंकुर आदि साफ्टवेयर का विकास हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में कार्य करने की दिशा में क्रांतिकारी प्रयास है । अनेक हिंदी पोर्टल, वर्तनी जांचक, शब्दकोश, हिंदी सर्च इंजन आदि ने हिंदी को तकनीकी रूप से समर्थ बनाकर इसे विश्वभाषा बनने में सक्षम बनाया है।

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- bkscgwb@gmail.com