सामाजिक

थर्ड जेंडर -दर्द ना जाने कोय

किन्नर समुदाय हमेशा से हमारे समाज में चर्चा का विषय रहे हैं ,ज्यादातर लोग इनके नाम से ही दहशत में आ जाते हैं जबकि करीब से महसूस करने पर इनके अन्दर भी असीमित पीड़ाएं हैं जिसे ये अपने अन्दर समेटे हैं | शादी-विवाहों और बच्चों के जन्म जैसे ख़ुशी के अवसरों पर नाचते-गाते किन्नर आपको जरूर दिख जायेंगे और यही इनके जीविकोपार्जन का जरिया भी है | कभी-कभी इनके बारे में कई अपराधिक ख़बरें भी सामने आई पर इसके पीछे के सच के बारे में जब आप गौर करेंगे तो निश्चित ही आप इनसे स्नेह और प्यार से पेश आएंगे | ये अपने अस्तित्व को लेकर काफी परेशां रहते हैं ,इन्हें भी दर्द होता है ,हर जगह इन्हें लोग अजीब नजरों से देखते हैं | अपने परिवार जहाँ ये जन्म लेते हैं वहां इनकी इतनी उपेक्षा होती है कि ये समाज और परिवार से कटने लगते हैं और अपने समुदाय में शामिल हो जाते हैं | किन्नर भी हम-आपकी तरह ही एक संरचना है , ये भी आम इंसानों की तरह ही हैं पर इनके दर्द को समझने वालों की तादाद न के बराबर ही है | अभी हाल-फ़िलहाल कई संगठनों ने इनके मानसिक हालात को समझने का प्रयास किया है ,पर स्थिति अभी भी इतनी सुधरी नहीं है | कई पत्रिकाओं ने शोध के जरिये भी इनकी मानसिक स्थिति को समाज के सामने परोसने का कार्य किया है पर अभी और बहुत प्रयास करने होंगे ,हमें इनके दर्द को करीब से महसूस करना होगा तभी कुछ सुधार संभव है |

किन्नरों की दुनियां एक अलग तरह की दुनियां है जिनके बारे में आम लोग कम ही समझ पाते हैं | मनुष्य के रूप में जन्म लेने बावजूद भी ये अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर हैं ,उनके साथ होने वाले सामाजिक भेदभाव उनमें हिन् भावना को जन्म देती है और उनका मनोबल टूटता है ,यही कारन है कि कभी-कभी वे उग्र व्यवहार करने लगते हैं | उनके लिए न ही रोजगार की व्यवस्था है और न ही परिवार का संबल ! ऐसे में वो अपनी आजीविका कैसे चलायें …..? यह एक गंभीर मुद्दा है ,जिसे समाज को समझना चाहिए और उनके प्रति होनेवाले सामाजिक भेदभाव की स्थिति को ख़त्म करना चाहिए | समय बदला ,युग बदला पर नहीं बदली किन्नरों की स्थिति ! आज भी ये समाज के कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं और समाज की प्रताड़ना से निरंतर जूझ रहे हैं | सुनी-सुनायी बातों से परिचालित यह हमारा समाज और समाज के लोग बस इनका एक पक्ष ही देखते हैं कि ये हमसे पैसे ऐंठते हैं और नहीं देने की स्थिति में ये किसी भी हद तक जा सकते है , पर जरा सोचिये,,कितना कठिन है समाज ,परिवार और अपनी खुद की स्थिति से लगातार जूझते हुये जीवन जीना ! वास्तव में इनकी बातों में असीम पीड़ा है जिसके अहसास से हम और हमारा समाज कोसों दूर हैं | हमारा देश आजाद हुआ और हम आजाद देश के नागरिक हैं ,पर क्या कभी हमने इस विन्दु पर विचार किया कि आजादी के इतने वर्षों के बाद भी हमारे समाज का एक तबका आजादी के बाद मिले कई अधिकारों से वंचित क्यों है …..???

किन्नरों का अस्तित्व दुनियां के हर देशों में है , समाज में उनकी पहचान भी है फिर भी उन्हें आम इंसानों की तरह नहीं समझा जाता ,उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता | उन्हें सरकार कोई आरक्षण नहीं देती ,दुःख की बात तो यह है कि कोई उनसे दोस्ती तक नहीं करता और उन्हें देखने के बाद हम ऐसे व्यवहार करते हैं मानों वो कोई दूसरी ग्रह से आये हैं | आखिर क्यों किसी जीते-जागते इन्सान को हम अजूबा समझने लगते हैं …? खुद सोचिये जब आपके साथ कोई ऐसा दुर्व्यवहार करेगा तो आप कब तक चुप रहेंगे ,ऐसे में उनका आक्रामक होना क्या जायज नहीं है | हम केवल इनके एक पक्ष को ही देखते हैं कि ये पैसे मांगने की मनमानी करते हैं,बोली लगाते हैं पर इसके सिवा उनके पास कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं है | ये भी समाज के एक अंग हैं ,इन्हें तिरस्कार के बजाय प्यार और सम्मान की जरुरत है | किन्नरों की चर्चा पौराणिक काल में भी रहा है ,महाभारत में अपने अज्ञातवास में अर्जुन का वृहनला का रूप धारण करना भी यही साबित करता है कि इनके लिए समाज में पर्याप्त स्थान था |

किन्नरों को लेकर समाज में आज भी वही धारणा है और आज भी उन्हें सिर्फ मनोरंजन का जरिया ही माना जाता है | उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या पहले भी थी और वर्तमान में भी है जिसके लिए वे तमाम हथकंडे भी अपनाते हैं जो सामाजिक मान्यताओं के अनुकूल नहीं है | बसों-गाड़ियों, सामूहिक जगहों पर जाकर लोगों से पैसे उगाही करने के अलावा इनके पास कोई विकल्प भी नहीं है | कभी-कभी तो यह भी देखने को मिलता है कि लोग जब इनकी बातों का मजाक उड़ाते हैं तो ऐसे में वे किसी भी हद तक उतर जाते हैं ,सही अर्थो में उनका यही रवैया बस ख़राब है | आर्थिक और सामाजिक रूप से शोषित यह वर्ग हम सबों के बिच रहते हुए भी तीसरी दुनियां के रूप में अलग-थलग पड़ा अपना जीवन यापन करने को मजबूर है ,यह बड़े ही दुःख की बात है | सरकारी दस्तावेजों में भी किन्नरों की भूमिका गौण है ,कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट का फैसला जब ट्रांस-जेंडरों को तीसरे लिंग के तौर पर मान्यता दी थी तो ऐसा लगा की इस फैसले से उनके जीवन में कुछ बदलाव आयेगा पर अभी भी स्थिति जस की तस है |

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

One thought on “थर्ड जेंडर -दर्द ना जाने कोय

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीया ! लेख बहुत ही बढ़िया लगा । किन्नर भी हमारी ही तरह इंसान हैं लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि ये पूरी तरह समाज और कानून दोनों से ही उपेक्षित हैं । किन्नरों की समस्या को उजागर करते एक उत्तम लेख के लिये आपका आभार ।

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